पश्चाताप

किशोर होते बच्चो पर ध्यान न दिए जाने के दुष्परिणाम

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Kusum Pareek
Kusum Pareek 28 Jun, 2020 | 1 min read

विधु २ महीने से बिस्तर पर पड़ा अपनी आने वाली जिंदगी के लिए थोड़ा आशंकित-सा दिखता है ।

कई बार वह सोते-सोते अचानक चौंककर उठ बैठता है और रोने लगता है ।

पश्चाताप उसकी आँखों से बार बार बह रहा है । 


विधु, उस मनहूस समय को भूलना चाह कर भी नहीं भूल पाता, जब उसे १०वीं में ही पापा ने नई बाइक लाकर दी व वह अपने दोस्तों के साथ सैर सपाटे व मौज मस्ती में ही ज़िन्दगी की खुशी समझने लगा ।


उसे बहुत खुशी होती थी ,"जब बहन के हर कार्यकलाप पर मम्मी पापा की नज़र होती हैऔर उस नौनिहाल का हर कृत्य माफ़ी के काबिल समझा जाता । "

"और एक दिन वह क्षण भी आया जब उसके दोस्तों ने उसे असली आनन्द दिलाने के चक्कर में एक 'कश ' लगवाया और उसके पश्चात वह "उस रंगीन दुनिया" में पहुँच गया जहाँ से विधु खुद भी वापिस नहीं आना चाहता था ।

यह नशा विधु को चोरी ,झूठ जैसे अन्य दुर्गुणों से भी युक्त करने लगा ।

जीवन ,मुरझाते पौधे की झड़ती पत्तियों जैसा हो गया है जिससे शिथिल देह उसे चलने में भी असहायक हो गई है।

एक दिन 'डोज़' की अत्यधिक मात्रा लेने की वज़ह से स्याह आँखों व लड़खड़ाते कदमों के सहारे जब वह पापा के साथ अस्पताल पहुंचा, वहाँ तक काफी देर हो चुकी थी ,लेकिन डॉक्टर्स की मेहनत व पापा-मम्मी के स्नेह ने उसे इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने में बहुत मदद की ।

आज २ महीने से उसकी तीमारदारी में पापा मम्मी लगे हुए हैं ।

काश ! 

काश! पहले रोज़ एक घण्टे के लिए भी मुझ पर निगरानी रख ली जाती तो शायद आज इस तीमारदारी की ज़रूरत ही नहीं पड़ती ।



कुसुम पारीक


स्वरचित ,मौलिक 


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