क्या कहा? टाइम मशीन।
वाह! तब तो बड़ा मज़ा आएगा।
पीछे मैं जाना नहीं चहती; हाँ , पर आगे का हाल क्या होगा, यदि ये वायरस दिन पर दिन और ताकतवर होता जाएगा?
हे टाइम मशीन! चल मुझे ले चल 2030 में ।
2030
मैं सड़क के किनारे खड़ी हूँ ।
यार, मैनें पूरी की पूरी पी.पी.इ. किट पहनी हुई है। बड़ी घबराहट सी हो रही है। मैं टैक्सी का इन्तज़ार कर रही हूँ, मुझे घर जाना है।
सामने से एक टैक्सी आ रही है। मैं हाथ दिखती हूँ,"टैक्सी ....टैक्सी"
ट र्र्र्र्रर ...
"थैंक गॉड! रुक गई, भैया कलिन्दनी कुंज चलोगे।"
टैक्सी वाले ने मुझे बहुत ही अजीब नज़रों से देखा। उसने फ़ेस शील्ड लगा रखी है, मुँह पर मास्क है, पर उसकी आँखें साफ़-साफ़ देख पा रही हूँ मैं। अजीब तरीके से घूर रहा है। मैनें अचरज से पूछा, "क्या हुआ भैया? चल रहे हो ना!"
"हाँ, पर मीटर से 100 रुपये ज़्यादा लूँगा।", मीटर डाऊन करते हुए उसने कहा।
"क्यो भाई! मीटर से 100 रुपये ज़्यादा क्यो?", मैने थोड़ा अड़ कर कहा।
वो बड़े रुबाब से बोला,"मीटर से 100 ज़्यादा ही लूँगा चलना है तो चलो।"
मेरे पास और कोई चारा नहीं था। वैसे भी अब सड़क पर सुविधाएँ इतनी आसानी से कहाँ मिलती हैं। मैने कहा,"ठीक है चलो।"
मैं टैक्सी में बैठ गई,"चलो भाई, लूट मचा रखी हैं लोगों ने आजकल।" धीरे-से मैने बड़बड़ाया।
टैक्सी वाले ने मेरी बात सुन ली वो चुप नहीं रह पाया तपाक से बोला,"दीदी जी, बात लूट की नहीं है अपनी जान की है बौनी-बट्टी का टाईम है तो अपनी जान को ज़ोखिम में डालकर आपको टैक्सी में बैठाया है,इसलिए 100 रुपये तो ज़्यादा बनते हैं।"
"तुम्हारी जान की कीमत 100 रुपये हैं क्या?", मैने मुस्कुराते हुए कहा।
"मेरी जान तो अनमोल है दीदी जी वैसे भी आजकल ज़िंदगी तलवार की धार पर रहती है कब कट जाएँ पता नहीं पर क्या करें पापी पेट के लिए सब करना पड़ता है।", टैक्सी वाला थोड़ा सामान्य होकर बोला।
"अच्छा ये बताओ मेरे तुम्हारी टैक्सी में बैठने से तुम्हारी जान को खतरा कैसे?", मुझसे रहा नहीं गया, तो मैने पूछ लिया।
"दीदी जी, आपको कलिन्दनी कुंज जाना है और मैने सुना है कि वहाँ के लोग खूब मिलनसार हैं एक-दूसरे की खूब मदद करते हैं एक-दूसरे के साथ उत्सव मनाते हैं। वहाँ जाने का मतलब अपनी जान के साथ धोखा करना ही तो है।", वो एक साँस में बोलता गया।
मैने आश्चर्य से पूछा,"पर, ये तो अच्छी बात है ना! मिलनसार होना तो अच्छा होता है, और एक-दूसरे की मदद करने में, खुशियाँ बाँटने में क्या बुराई है?"
वो एक साँस में बोलता गया, "किस ज़माने में जी रही है आप, दीदी जी! ऐसे मिलनसार लोगों की वजह से ही तो दुनिया में लोगों की जान को खतरा है एक तो, ऐसे लोगों को पहचानना भी मुश्किल है ना जाने कब अपने बीच में आ जाएँ क्या जरूरत है एक-दूसरे के हाल-चाल से मतलब रखनें की? ऐसे मिलनसार लोगों को तो पकड़-पकड़ कर जेल में बंद कर देना चाहिए।"
उसकी बात सुनकर थोड़ी देर मेरे कानों को विश्वास ही नहीं हुआ, "ये मैं क्या सुन रही हूँ!"
ना जाने क्यों ये मिलनसार शब्द मुझे कुछ आतंकवादी सा प्रतीत हुआ।
मेरी रचना आपको कैसी लगी? कृपया आप अपनी समीक्षा अवश्य दें।
स्वरचित एवम् मौलिक
आपकी
दीपाली सनोटीया'कमल'
14/04/2021
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
आज की परिस्थिति को देखते हुए आगे क्या होगा नहीं कह सकते। आपकी कोशिश अच्छी है।
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