"खिड़की"
"मेरे सामने वाली खिड़की में इक चाँद का टुकड़ा रहता है" ये गाना आपने जरूर सुना होगा, पर मैं यहाँ इस खिड़की का जिक्र नहीं करूँगा।
बात काफी साल पुरानी है जब मैं छोटा बच्चा था , आप भी रहे होंगे बच्चे । आज हम जानते है कि दाँत दो तरह के होते है एक स्थायी दूसरा अस्थायी । पर बचपन में कहाँ पता। हुआ यूँ कि मेरी सामने की एक दाँत हिल रही थी बहुत कोशिश की गयी कि टूट जाये पर टूटती नहीं थी।
स्कूल जाता था । क्लास में था । शिक्षक महोदय ने मुझे बोर्ड पर जाकर हिंदी कोई शब्द लिखने को कहा था । मैं लिख ही रहा था कि लगा कि जीभ के धक्के से दाँत टूट गयी। मैंने झट से टीचर से कहा " मे आई गो आउट सर?"(क्या मैं बाहर जा सकता हूँ?) मेरे सहपाठी सोंच में थे कि इसे क्या हुआ।
मैं दौड़ के स्कूल के फील्ड में गया और दाँत को घाँस के नीचे दवाने लगा। ऐसा करते मझे एक शिक्षक ने देख लिया और मुझे ऑफिस में बुलाया।मै डर गया क्योंकि मुझे लगा कि मुझसे पूछा जायेगा कि क्लास के टाइम में मैं फील्ड में क्या कर रहा हूँ?मैं ऑफिस में गया ।
वहाँ कई टीचर्स थे । मैंने जाते ही कहना शुरू किया कि "मेरी दाँत टूट गयी थी और पंछी न देख ले इसी लिए जल्दी से घाँस के नीचे उसे दवा रहा था"।
एक टीचर ने मुझसे पूछा कि ऐसा क्यूँ? मैंने कहा'" सर चिड़िया टूटे दांत को देख ले तो फिर दाँत नहीं निकलता ना!" टीचर्स हंसने लगे। हुआ यूँ था कि मेरे एक दोस्त ने मुझे ये थ्योरी समझाई थी ।
मैं लंच ब्रेक में जब स्कूल फील्ड में खेल रहा था तो मेरे साथी मुझे कहने लगे कि इसके मुँह में भी खिड़की बन गयी। उनमें से तो कइयों के दो -दो खिड़कियां थीं। हम सब एक दूसरे को देख हंस रहे थे । आपके साथ भी हुआ होगा ऐसा ,है न!
कुछ दिनों के बाद मेरी दाँत निकल आयी।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
🤓🤓nice one.
Thanks
True, bachpan ki yaadein achi hoti hai।
बहुत मज़ेदार..!!
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