प्रेम का संबंध तो भावनाओं से होता है न कि इस बात से कि, ये किससे किया गया है।
ऐसी ही एक कहानी है,ममता की जो हर बच्चे से प्रेम करती थी,जबकि उसकी खुद की संतान नहीं थी।ऐसा नहीं था कि उसे बच्चा नहीं चाहिए था,किंतु वो हर कोशिश करके हार चुकी थी लेकिन कहीं कोई उम्मीद नहीं नजर आती।
अब तो उसके ससुराल वालों ने भी उससे किनारा कर लिया था।लेकिन उसका पति उससे बेहद प्रेम करता था और हर हाल में उसके साथ था। रोज एक अनाथालय जाती और कुछ पल वहां बिता खुद को तृप्त कर आ जाती।
ममता के अंदर असीम ममता थी,जिसे वो लुटाना चाहती थी,किंतु उसकी किस्मत थी कि साथ नहीं दे रही थी।
जब भी कोई नवजात शिशु अनाथालय आता,उसे ले कर बैठी रहतीं और खुद की ममता को सहारा देती। पता नहीं किस्मत ही ऐसी थी उसकी या ईश्वर कुछ और चाहते थे उससे,असमय उसके पति की मृत्यु हो गई। ममता बेसुध सी पड़ी रहती जैसे जल बिन मछली हो।
कोई राह नहीं नजर आती,ना तो ससुराल वाले उसके साथ थे बस बांझ कहकर बुलाते, तो मायके से भी कोई आगे नहीं आया।
तभी जिस अनाथालय में वो जाती थी वहां के व्यवस्थापक का फोन आया। वो बताने लगीं कि, "इस अनाथालय को जिन्होंने स्थापित किया था उनका देहांत हो गया है और अब उनके परिवार से कोई भी नही मदद कर रहा है।"
उन्हें खुद ही इसे चलाने के लिए मदद लानी होगी और इस अनाथालय को सम्हालने के लिए ममता की जरूरत होगी।
ममता को तो आसरा मिल गया, क्योंकि अब उसे अपना धेय नजर आ रहा था। उसने तुरंत हां कर दी।ममता अब वहीं रहने लगी,पूरा दिन कैसे निकल जाता उसे पता नहीं चलता। कितने ही वर्ष निकल गए,और कितने ही बच्चे उसकी आँचल की छांव में बड़े हो कर अलग स्थानों पर चले गए,किंतु ममता से सारे बच्चे प्यार करते, क्योंकि उन्हें निस्वार्थ प्रेम जो मिला था।
आज ममता को नारी शक्ति सम्मान पुरुस्कार से सम्मानित होना था। लेकिन वो चाहती थी, कि हर बच्चा आज साथ हो उसके।कुछ लड़के जो आज अपने परिवार बसा कर रह रहे थे वो अनाथालय आए और ममता का हाथ थाम कर उन्हें सम्मान समारोह ले गए।
ममता को भरे भवन में सम्मानित किया गया,अब वो एक वृद्ध हो चली थी,आंखो पर बड़ा सा चश्मा,हाथ में एक छड़ी और चेहरे पर झुरियां।किंतु ममता का दिल आज भी ममता से पूर्ण था। उनसे कुछ शब्द बोलने को कहा तो ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई।तभी उनके अनाथालय की एक लड़की सुषमा आई और उनके तरफ से सबको धन्यवाद दिया।
आगे बोली," सही मायनों में तो आप हम जैसे कितने ही बच्चों की मां हो और जो प्यार आपने दिया, हमें लायक बनाया उसका तो ऋण हम कभी नहीं चुका पाएंगे।जब अपनो ने छोड़ा तब आपने सम्हाला।आज से आपको हम सब एक उपाधि देते हैं, "वात्सल्य मां" की।
आपका हमारे साथ होना सबसे बड़ा सौभाग्य है।
ममता तो बस सुनती रह गई और उसके नयनों से अश्रु धारा बह निकली, उसे कभी बांझ और बेकार समझने वाले समाज पर आज उसका ये सम्मान एक तमाचा था।
उसके मातृत्व प्रेम की जीत थी। भले ही कोख से जन्म ना दिया हो,फिर भी कितने ही बच्चों की मां बन गई थी।
आज प्रेम के सच्चे रूप को समझ पा रही थी।
एक कोशिश है मेरी उन सभी मांओ को जिनकी अपनी संतान नहीं,निराश ना हो ममता तो ममता होती है उसे बच्चों पर लुटाए। अपने ना हो तो जिनके मां बाप नहीं उनके लिए आगे आएं।
धन्यवाद।
लेखिका : विनीता सिंह तोमर
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