"बाबा आपको क्या हो गया है,जब से वापस आए हैं श्रीनगर से बस चुपचाप ही रहते हैं ना बोलते हैं ना ही मुझे अपनी परेशानी बताते हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया जो आपको खाए जा रहा है,मधु अपने पिता से बोली।"
नरेन जी एक सिपाही थे और उनकी आखिरी तैनाती श्रीनगर में थी।अपनी तैनाती के कुछ समय बाद ही न जाने क्या हुआ कि उन्होंने स्वेच्छा से रिटायरमेंट ले लिया और वापस अपने गांव, दीनापुर आ गए।
लेकिन जब से वापस आए हैं बस गुमसुम से रहते ना बोलते ना बाहर जाते किसी से मिलने।
उनकी पत्नी समझाकर थक चुकी थी इसलिए शहर से बेटी को बुलाया ताकि नरेन जी कुछ बोले और समस्या का पता चले।
नरेन जी कुछ ना बोले बस आंखे झुकाए बैठे रहे।
लेकिन मधु भी कहां हार मानने वाली थी।एक सिपाही की बेटी थी जिसने हमेशा सवालों का जवाब ढूंढना सिखाया हो वो हिम्मत नहीं हारती।
उसने भी कई बार बाबा से पूछा, अपनी खुशी का वास्ता दिया।तब जा कर नरेन जी ने बोलना शुरू किया।
बोले,"बेटा मै खुद से नाराज था कि इतनी ईमानदारी से नौकरी की फिर भी मुझे जिल्लत ही मिली। क्योंकि मैं एक छोटा आदमी हूं। मुझे जिम्मेदारी दी थी राशन का काम सम्हालने की लेकिन कुछ लोगो ने राशन के बजट में हेरा फेरी की और मुझे बीच में फसा दिया।
मुझे कुछ दिन का समय दिया गया खुद को साबित करने का लेकिन बुरा ये था कि इतने साल काम करने पर भी मुझ पर विश्वास नही किया किसी ने।
मैने खुद को बेकुसूर तो साबित कर दिया,बस और नहीं काम कर पाया। अपने गांव वापस आ गया।
अब बताओ बेटा,क्या मैं चोर हूं?"
"नहीं बाबा आप ने सही काम किया,लेकिन यूं खुद को सजा मत दीजिए"। हम सब आपके अपने है,फिर विश्वास रख कर बताते तो एक बार,मधु बोली"।
चलिए एक नई शुरुआत करते हैं,आप यहां खेती का काम शुरू करिए और घर में मां का साथ दीजिए।
सब बुरी यादें भूल जायेंगे आप।
परिवार तो होते हैं साथ देने के लिए और मैं हर हाल में आपके साथ हूं।
मधु के बोल सुन,नरेन जी भाव विभोर हो गए।कहने लगे,"बेटी हो तो ऐसी जो हर घाव को भर दे।"
दोस्तो, ये कहानी एक पिता और बेटी के रिश्ते के साथ उनके आपसी विश्वास भी है।
धन्यवाद।
लेखिका : विनीता सिंह तोमर
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