"उफ हो पापा क्या आप भी पूरे दिन ये न्यूज देखते रहते हो।सब कितना गलत हो रहा है इंडिया में तो, कभी दंगे होने लगते हैं तो कभी ये काला बाजारी होती है।
आज जब सब महामारी से परेशान हैं तो भी लोगों को चैन नहीं है बस पैसा बना रहे हैं। मुझे इसलिए नहीं रहना इस देश में, चली जाना चाहती हूं दूसरे देश में और आप भी चलना मेरे साथ,इतना सब देविका बोल गई"।
पापा श्री सुमंत कुमार बोले,"बेटा क्या हर बात से भाग जाने से उसका हल निकल आता है? ये जो तुम कह रही हो सब सच है लेकिन किसने बनाया है ये सिस्टम ऐसा? हम लोगों की चाहतों ने भी सब किया है।
पहले ऐसा तो नहीं था देश ना ही लोग थे ऐसे। हर कोई एक दूसरे के दर्द को समझता था कालाबाजारी की घटनाएं आम नहीं थी तब। सौहार्द था आपस में, फिर धीरे धीरे लालच और धन संचय ने हमें घेर लिया।
तुम भी तो विदेश इसलिए जाना चाहती हो ताकि खूब पैसा कमा सको। भाग जाने से कोई हल नहीं निकलेगा ।"
देविका पापा की बात सुन सोच में डूब गई।सच ही तो कह रहे थे पापा,कोई देश हम लोगो से मिलकर बनता है वहां का सिस्टम लोग बनाते हैं न कि कोई और फिर देश खुद में गलत कैसे हो सकता है और हम सही?
कितना अच्छा इतिहास रहा है इंडिया का अगर सच में कोई ठीक से जाने तो।क्या नहीं है हमारे पास।
अच्छे साधन है,लोग हैं, अलग अलग प्रकार की जमीन हैं व्यवस्था है। बस नहीं है तो सही नेतृत्व। या कहें पुराने सिस्टम को जंग लग गया है। देश को जगह जगह पर अच्छा नेता चाहिए जो कुर्सी पर नहीं रास्तों पर रह कर काम कर सके।
बदलाव चाहिए ताकि सिस्टम में भी सुधार आए।
शिक्षा चाहिए ताकि हर बच्चा और उसका परिवार अपने अधिकार समझ पाए। वोट देने से पहले सही का निर्णय कर पाए ना कि सिर्फ पैसे के बल पर अपना वोट बेच आए।
अपनो को साथ ले कर आगे बढ़ने का समय है, हम कह तो देते हैं कि क्या करे ये नेता ही ऐसे हैं पर क्या खुद को साबित करने की कोशिश करी है?
देविका अब समझ गई थी कि अधिकार के साथ कर्तव्य भी मायने रखते हैं।
क्या आप मेरी बात से सहमत हैं?
अगर सहमत हैं तो अपने विचार जरूर रखे ।
धन्यवाद।
लेखिका - विनीता सिंह तोमर "मानवी"
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