क्या बिकता नहीं बाजारों में ,
कौन सा खरीदार नहीं चौराहों पे ,
लेकर आओ तो सही दर्द यहां ,
दर्द का भी होता है व्यापार यहां ।
हां , मैं दर्द बेचती हूं ,
हां, मैं दर्द खरीदती हूं ,
मैं दर्द का सौदा करती हूं ।
प्यासे होंठों पे मैं बांध बनाती हूं ,
अंगुलियों के पोरों पर मैं सागर थाम लेती हूं ,
प्यालियों में भर कर घूंट घूंट
मैं पीती - पिलाती हूं ,
हां , मैं दर्द बेचती हूं ।
खुले ज़ख्मों पर मैं मरहम सजाती हूं ,
भावों को शब्दों से तौलती हूं ,
जज्बातों से कीमत चुकाती हूं ,
अहसासो का मोल लगाती हूं ,
हां मैं दर्द खरीदती हूं ।
खारे दरिया में भी डूबती-उतरती हूं ,
सपनों के टूटे कांच पलकों से चुन कर लाती हूं ,
अपने अधूरेपन को मैं खालीपन से भरती हूं ,
कुछ अधूरे लम्हों से मैं दर्द उधार लेती हूं ।
रतजगों से नींद की उधारी चुकाती हूं ,
रोज यादों के दिये जलाती हूं ,
बाती की जगह खुद जलती हूं ,
मैं दर्द का मोल यूं चुकाती हूं ।
कुछ अकेली शामों से तन्हाइयों का सौदा करती हूं ,
टूटे सिक्के किस्सों के मैं तौल पर चढ़ाती हूं ,
कुछ पूराने बेच कर नया दर्द मैं खरीदती हूं ,
हां , मैं दर्द का सौदा करती हूं ।
रचना - तुलिका दास ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
बेहतरीन 👏👏
शुक्रिया
बढ़िया
शुक्रिया
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