वो कुछ इस तरह करीब आए
कि फासलों का अहसास करा गये।
साथ चले कदम मगर
रास्ते जुदा हो गए ।
छुआ उंगलियों ने उंगलियों को
पर हाथों में हाथ ना आ सके ।
तरसे नैनों की प्यास मिटी
पर दिल में प्यास जग उठी ।
सुकून तो देख कर आपको हासिल हुआ ,
दर्द भी बहुत इस दिल में हुआ ।
अहसास बोल बन कर पिघले
पर होंठों को होठ ना छूं सके ।
क्यों पास आके भी हम
आपसे इतने दूर रहे ।
रचना - तुलिका दास ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Well penned 👏 👏
Thank u .
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