एक शाम अकेली बैठी मैं
कुछ सोच रही थी ,
जिंदगी के पन्ने पलट रही थी,
वक्त की पड़ी धूल को ,
आंचल से अपने झाड़ रही थी ,
नाम अचानक लेकर तुम्हारा ,
किसी ने मुझे चौका दिया ,
वक्त की बाहों में मुझे,
यादों में खींच लिया ।
थाम मेरा हाथ चली वो ,
यादों की भूल भुलैया में ,
कई मोड़े पार कर वो ,
रुक गई एक गली में ,
मैं अकेली रह गई ,
वो जाने कहां चली गई ।
गलियां जानी पहचानी थी ,
मैं आगे बढ़ने लगी ।
बंद द्वार एक आगे आया ,
कदम मेरे आगे ना बढ़े ,
निगाहे वहीं ठिठक गई ।
बंद दरवाजा अचानक खुल गया ,
सामने वहां तुम खड़े थे ,
चाहा वहां से मुड़ जाऊं ,
पर पैरों ने साथ न दिया ,
निगाहों ने झुकने से इनकार किया,
खुद पर मेरा बस ना चला ।
थाम मेरा हाथ तुमने ,
आगोश में मुझे लिया ।
सारे दर्द मिटा दिए ,
यू प्यार से जो थामा
खो गई प्यार में तुम्हारे
नींद मुझे आ गई ।
पानी का छींटा पड़ा ,
बंद पलकें खुल गई ।
हां ! यह सब एक ख्वाब था ,
जो उस मोड़ पर मेरी पलकों में आ बसा था ।
चली थी हकीकत की जमीन से
वक्त यादों में खींच ले गया ,
मन बावरा फिर यादों में खो गया था ।
कोई मुझसे यह न पूछें -
ये गलियां कौन सी है ,
क्या है उस बंद दरवाजे के पीछे ,
थामा जिसने था मुझे ,
वो बाहें किसकी है?
रचना - तुलिका दास ।
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Nice
शुक्रिया
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