अगर सेंटा बन जाऊँगी

क्या करुँगी अगर सेंटा बन जाऊँगी

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Surabhi sharma
Surabhi sharma 14 Dec, 2022 | 1 min read

क्या करुँगी अगर सेंटा बन जाऊँगी? 

घायल प्रकृति संग थोड़ा नीर बहा

क्या उसका दर्द बाँट पाऊँगी? 

जो समझ गयी उसकी तहें जख्म की

तो क्या जन-जन को प्रकृति की महिमा

समझा पाऊँगी? 

या फिर अर्धरात्रि में छुप के

मेरे इंतजार में टंगे नन्हे मोजों में

कुछ हरियल पौधे रख आऊंगी |


क्या करुँगी अगर सेंटा बन जाऊँगी? 

व्यस्त से व्यस्ततम होते मानुष को

क्या मशीन बनने से रोक पाऊँगी? 

या फिर अर्धरात्रि में चुपचाप

उनकी जुराबो में पारिवारिक समय के

कुछ खुशहाल गीत रख आऊंगी |


क्या करुँगी अगर सेंटा बन जाऊँगी? 

इक्कीसवीं सदी के स्पन्दनशील 

नन्ही उँगलियों को पकड़ क्या 

उन जैसी रोबोट बनती जाऊँगी? 

या फिर अर्धरात्रि में कुछ खिल के 

उनकी टोपी में बेफिक्र खिलखिलाता 

बचपन रख आऊंगी |


 क्या करुँगी अगर सेंटा बन जाऊँगी? 

स्वार्थ - लिप्सा की बलिवेदी पर चढ़ने से 

क्या उगती नयी पीढ़ी को रोक पाऊँगी? 

या फिर तम में दीपक बन 

उनके हृदय सीप में 

इंसानियत के कुछ मोती रख आऊंगी |


क्या करुँगी अगर सेंटा बन जाऊँगी? 

नींद से दुश्मनी रखने वाले 

भूखी-बीमार झोपड़ियों में 

रोटियों के पेड़ लगाऊँगी

औषधियों के पौधे उगाउंगी|


क्या करुँगी अगर अगर सेंटा बन जाऊँगी? 

नफरत की कंटीले झाड़ियों में मट्ठा डाल 

जिंगल - बेल जिंगल - बेल के मधुर 

प्यार भरे गीत जग में फैलाउंगी|

अगर जो मैं सेंटा बन जाऊँगी? 


धन्यवाद 

 

सुरभि शर्मा 



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