न बचाओ मुझे
हाँ सच मार ही डालो
इस दुनिया मे आने से पहले।
न देख पाऊंगी
बेटी के साथ होते भेदभाव
पंगु सोच में कभी न आते बदलाव।
न झूझना पड़ेगा
उन चीरती नज़रो से
नुक्कड़ पे खड़े उन छिछोरों से।
न ही देनी पड़ेगी
कुर्बानी अपने सपनों की
मन में पनपते अपने अरमानों की।
न सिसकना पड़ेगा
हर रात अपने तकिये पर
सब सहकर,ज़हर के घूँट पीकर।
न ओढ़नी होगी
जिम्मेदारियों की भारी चादर
झूठे रिश्तों का लबादा,मिलता सदा निरादर।
न सीखना होगा
गूंगे बनकर शोषित होना
मर्दो की गुलाम बन उनकी दासी बनना।
न देनी होगी
परीक्षा अपनी पवित्रता की
सफाई अपने दोस्तों से बने रिश्तों की।
न बनूँगी कभी
किसी के हवस की शिकार
जख्मी तन मन,हर पल होते बलात्कार।
जब आदर का भाव नही
तो क्यों है बेटियों को बचाना
अत्याचार कर उनका तमाशा बनाना।
बेहतर है कोख में ही
जीवन का अंत हो जाना
यहाँ रहने से अच्छा वहीं कब्र बनाना।
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