आज मैं अपनी कहानी सुनाने आयी हूँ।जी मैंने अंग्रेज़ी में डॉक्टरेट की उपाधि ली है और एक निजी कॉलेज में अंग्रेज़ी की प्रोफेसर हूँ।अपने छात्रों में काफी लोकप्रिय हूँ और अपने साथी प्रोफेसर के बीच उपेक्षित या कहिये उनके उपहास का पात्र।अक्सर मुझ पर हिंदी प्रेमी होने का ताना मारा जाता है।और सही भी है कविताएं मैं हिंदी में लिखती हूँ, दस लघुकथाएं हिंदी दैनिक में छप चुकी है और अक्सर मंच का संचालन भी हिंदी में ही करती हूँ।अक्सर हाथ में अमृता प्रीतम या महादेवी वर्मा की कोई किताब ही होती है।
कुछ दिन पहले कॉलेज में एक विद्यार्थी दल लंदन से आया और उनके स्वागत के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।प्रिंसिपल ने संचालन की जिम्मेदारी मुझे दी तो शर्माजी तपाक से बोले,
“अरे सर,लंदन वालो को मैडम की भाषा कहा समझ आएगी।अंग्रेज़ी से इन्हें लगाव कम है और इनकी प्रिय भाषा उनको समझ नही आएगी।"
इस बार ये तंज तीर के समान दिल में चुभ गया। "आप चिंता न करे सर, हर बार की तरह आपको इस बार भी निराश नही करूँगी।“ झांसी की रानी की तरह शपथ तो ले ली पर करना क्या था,ये पता न था!
खैर वो दिन भी आ गया, मैं मंच पर आई और आते साथ ही सुनाई दिया “हिंदी इतनी प्रिय है तो अंग्रेजी विभाग में क्या करती हो।"
"डॉक्टरेट भी हिंदी में ही कर लेती।"एक के बाद एक तीर मुझ पर चलाये जा रहे थे।मैं विचलित न हुई।
"आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन करते हुए मैं बताना चाहूंगी कि हमारे मेहमान लंदन से लैंग्वेज एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत यहाँ हिंदी भाषा पर शोध करने आये है।समय नष्ट न करते हुए आईये अब मुद्दे के बात पर आते है।
तो बात जब भाषा की आती है तो सबसे प्रिय हमारी मातृभाषा ही होती है।हम भले ही किसी और भाषा में बोले पर विचार हिंदी में ही आते है।अपनी दिल की बात हिंदी में ही कह पाते है।पर विडंबना देखिए ये विद्यार्थी दल लंदन से हिंदी सीखने आया है और हम अपनी ही भाषा का तिरस्कार करते है।हिंदी बोलना जैसे अभिशाप माना जाता है।
हाँ प्रिय है मुझे हिंदी औऱ क्यों न हो अपनी माँ किसे प्रिय नही होती।और बस यही कह सकती हूं कि
When you think something great you need a great language to express and no language is greater than your mother tongue.”( जब हम कुछ उच्च लिखना चाहते है तो एक उच्च भाषा की जरूरत होती है और मातृभाषा से उच्च कुछ नही।)
“वाह क्या खूब लिखा है।“ सोचते हुए चारु ने किताब बन्द की। किताब का शीर्षक 'अंग्रेज़ी से प्रिय हिंदी तक' बाकी कल पढ़ने के लिए।
© डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा
स्वरचित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
चारु 😬😬😬
जी चारु ❤️❤️
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