बची झूठन पर पलती वो,
तन को उतरन से ढाँके,
चिकटे बालों में,मटमैली सी,
उसकी आँखों में भी सपने झाँके।
आईने के टूटे टुकड़े में,
देख खुद को वो इतराती,
टूटे हेयर बैंड का ताज बना,
विश्व सुंदरी वो बन जाती।
सुंदर कपड़े, सुंदर खिलौने,
बस यही उसके सपने में आयें,
क्यों माँ को उसका जन्मदिन याद नहीं,
क्यों उसके जीवन में ये दिन न आये?
सुना था उसने की सपने सबके साथी है,
मेहनत से पूरे हो जाया करते है,
घर का सारा काम करती फिर भी,
उसके सपने क्यों मुझसे बैर रखते है।
मैडम की बिटिया तो ठाठ से फिरती है,
पर उसे तो रोटी भी भरपूर न मिलती,
बचपन पर हक़ उसका भी तो है,
क्यों उसे काम से आज़ादी न मिलती।
ऑंखों में सपनों की जगह अब सवाल है,
मुस्कुराहट थकान के पीछे छिप गयीं है,
कलम वाले हाथ आज झाड़ू थामे फिरते है,
लानत है हम पर जो मासूमों से काम लेते है।
डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Too good outstanding
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