सूरज की बिटिया

साँवली बच्चियों के मन की बात।

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Dr.Shweta Prakash Kukreja
Dr.Shweta Prakash Kukreja 31 Oct, 2022 | 1 min read

चाँद सी बिटिया माँगी थी बाबा ने,

सूरज में जली साँवली गोद आयी,

हाथ सदा उसके रीते ही रहते थे,

उसकी साँवली सूरतिया किसी को न भायी।

क्रीम,उबटन सब लगाया जाता था उसको,

चमड़ी को उसकी कालिख समझा जाता था,

खुद को दुनिया की नज़रों से देखा करती वो,

बना न कभी खुद से उसका कोई नाता था।

चाँद की चाँदनी कभी न बन पाई वो,

सो सूरज की तपिश को अपना लिया ,

ठंडक बिखेरना न आया उसको कभी,

आग में तपाकर खुद को सोना बना ।।


©Dr.Shweta Prakash Kukreja



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Dr.Shweta Prakash Kukreja

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