सावन आते ही मन बड़ा उचाट सा रहता था।इतने साल हो गए है पर फिर भी मन मानता ही न था।रह रहकर उसकी याद आती और संग आँखों में ऑंसू भी।काम निपटा कर आज टी वी देखने की बजाए अलमारी से पुराना एल्बम निकाल कर बैठ गयी।बचपन की फ़ोटो देख वापस उन गलियारों में पहुँच गयी।
"अम्मा , अम्मा देखो तो कैसा प्यारा सा ,नन्हा भाई दिया है भगवानजी ने मुझे।" अस्पताल से दौड़ती हुई आयी और मैं दादी से लिपट गयी।बहुत प्यारा था अर्जुन मुझे।उसकी बहन थी मैं पर माँ की तरह उसका ख्याल रखती थी।मैं हमेशा उसका साथ देती थी, उसके साथ खड़ी रहती थी।
बस एक बार उसका साथ न दिया और वह रूठ गया।
"क्या इस दिन के लिए तुझे भगवान से माँगा था हमने। पूरे समाज के सामने क्या मुँह दिखाएंगे हम।" पापा ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहे थे और माँ का रोना ही न थम रहा था।
"पापा मेरी ज़िंदगी के फैसला मैं ही करूँगा।" अर्जुन भी चिल्लाया।
तमा.....च..चच!!!!..मैंने एक ज़ोरदार थप्पड़ उसे मार दिया।
" शर्म नहीं आती पापा से ऐसे बात करेगा तू।इतना बड़ा हो गया है कि फ़ैसले अब तू खुद करेगा।"मुझे बहुत गुस्सा आया।
" जिज्जी तुम भी नहीं समझी मुझे।मुझे लगा तुम तो साथ दोगी। हमेशा देती आयी हो।जिज्जी प्लीज कोई तो समझो मेरी बात।" वह फ़ूट फूटकर रोने लगा।उस रात के बाद मैंने उसे कभी नहीं देखा। आज दो साल हो गए उसकी कलाई पर राखी नहीं बाँधी मैंने। मेरे आँसू बहते जा रहे थे कि पीहू आयी।
" माँ देखो, ये देखो मामा का नाम आया है अखबार में। उनको कोई पुरस्कार मिलने वाला है।
अर्जुन सिंह को युथ आइकॉन अवार्ड 11 अगस्त को दिया जाएगा।यह पुरस्कार नृत्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया जाएगा।"
बड़ा गर्व हुआ मुझे पढ़कर।आखिरकार मेरे भाई ने परिवार के नाम को झुकने नहीं दिया।फ़ोन उठाया पर हिम्मत न हुई उससे बात करने की।पीहू के ज़िद करने पर मैं उसके घर गयी।सकुचाते हुए दरवाज़ा खटखटाया।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला वह स्तब्ध रह गया।
मेरा भी गला भर आया।रुँधे गले से मैंने कहा, " अंदर आऊँ या नहीं?"
सुन अर्जुन लिपट गया और हम दोनों खूब रोये।पीहू को कुछ समझ नहीं आ रहा था सो बोली, " भरत मिलाप हो गया हो तो अंदर चले?"
" जिज्जी मुझे पता था अगर कोई घर से कभी मुझे देखने आएगा तो वो तुम ही होगी।मुझे पता था तुम समझोगी मेरी बात को।बड़ी देर लगा दी जिज्जी।" वह फिर रो पड़ा।
" माफ कर दे अर्जुन।उस वक़्त समझ न आया कि हमारे शौक हमारे लिंग के अनुसार नहीं होते है।लड़का होकर पोल डांसिंग करना समझ नहीं आया हम में से किसी को भी।
पर शुक्रिया तूने आज मुझे ही नहीं पूरे समाज को समझा दिया कि नृत्य एक कला है जो कोई भी कर सकता है।लड़के भी पोल डांसर हो सकते है।माफ कर दे भाई।"मैंने उसे गले लगाया।
" एक शर्त पर कल समारोह में मुझे अपनी काली साड़ी दोगी पहनने के लिए और मेरे साथ चलोगी।मंज़ूर?" अर्जुन बोला।
" हाँ मेरे भाई साड़ी भी दूँगी और मेकअप भी मैं ही करूँगी तेरा।" मैंने उसका माथा चूम लिया।असल में रक्षाबंधन तो आज मना रही थी मैं।मन ही मन उसे वचन देकर कि सदा उसका साथ दूँगी, उसकी रक्षा करूँगी।
©डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा
जुलाई 2022
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
No comments yet.
Be the first to express what you feel 🥰.
Please Login or Create a free account to comment.