मेरा वैलेंटाइन

वो कहते है कि जब हमारे पास कुछ ज्यादा होता है तभी हम किसी और को दे पाते है।तो एक कहानी खुद से प्यार सिखाती हुई।

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Dr.Shweta Prakash Kukreja
Dr.Shweta Prakash Kukreja 14 Feb, 2022 | 1 min read
#day8 #valentineday #paperwifflove

कभी कभी जीवन की भागदौड़ में हम प्यार का मतलब ही भूल जाते है।कहने को शादी शालू ने अपनी पसंद से की थी पर शादी के बाद घर की उलझनों में खुद ही उलझ गई।ये वही लड़की थी जिसके परफ्यूम से कॉलेज के सारे लड़के उसे पहचान लेते थे और अब बस उसके पास से लहसुन और प्याज़ की बदबू ही आती थी।एक दम टिपटॉप बन के रहने वाली शालू आज अपने बाल भी नहीं बनाती थी।ऐसा नहीं था उसे ये सब अच्छा न लगता पर जिम्मेदारियों ने उसे अपना खुद का अस्तित्व ही भुला दिया था।

जब कोविड का समय आया तो पति और बच्चे सब घर पर रहने लगे।शालू के पास काफी समय बचता।समय बिताने के लिए उसने फेसबुक पर अपना एकाउंट बनाया।उसे पुराने दोस्त मिलने लगे।बड़ा मजा आता उसे अपने पुराने दोस्तों से बात करके।उनकी बातों ने उसे पुरानी शालू को याद करवाया।

एक दिन सारे दोस्तों ने ज़ूम पर मीटिंग करने की सोची।शालू को देख सब अचंभे में थे।"ये क्या बना लिया है तूने खुद को?"आशा बोली।

"शालू कौन कहेगा कि तुम कॉलेज की सबसे पॉपुलर लड़की थी।"अमित बोला।

"खुद को कहाँ गुमा दिया है तुमने?"

सबकी बातें सुन शालू की आँखें भर आयी।परिवार के लिए उसने अपनेआप को ही मिटा दिया था।आईने में खुद को देखा तो फूटफूट कर रो पड़ी वह।सबको प्यार देना चाहती थी वो और आज खुद प्यार की कमी महसूस कर रही थी।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।फेसबुक को स्क्रोल कर रही थी कि अचानक नज़र एक कांटेस्ट पर पड़ी।पेपरविफ़ नामक एक प्लेटफार्म ने एक लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया था।पता नहीं क्या सूझा शालू को और उसने पहले डायरी में कुछ पंक्तियां लिखी और फिर मोबाइल पर टाइप करने लगी।

दो दिन बाद जब फेसबुक पर देखा तो उसे तीसरा पुरस्कार मिला था।उसे बड़ी खुशी हुई अपना नाम देखकर।फिर तो जितनी भी प्रतियोगिता होती वह जरूर हिस्सा लेती।उसने एक बाई भी रख ली जिससे उसे थोड़ा समय अपने लिए भी मिलने लगा था।खूब किताबें पढ़ती जिससे उसकी भाषा पर पकड़ बढती जा रही थी।उस दिन तो सूरज भी बोल पड़े,"क्या बात है बीवी आज तो बॉस ने मुझे बुलाकर कहा कि आपकी वाइफ तो बड़ा अच्छा लिखती है। बड़ा गर्व महसूस हुआ मुझे।"

पेपरविफ़ की ओर से उसे इनाम भी मिलते जिसे वह अपने बैंक में डालती जाती।एक बार वीडियो कांटेस्ट हुआ और उसने भाग लेने की सोची।खाना बना वह तुरंत पार्लर गयी और तसल्ली से अपने काम करवाये।आईने में देख कर वह बहुत खुश हुई और बोली,"आई लव यू"।

वीडियो बनाया और उसे प्रथम पुरस्कार मिला।हर जगह उसका वीडियो सराहा गया।अब पुरानी शालू उसे वापस मिल गयी थी।वैलेंटाइन डे पर पेपरविफ़ का ओपन माइक था जिसमें हिस्सा लेने वह लखनऊ गयी।अपनी कविता सुनाने के बाद बोली,


"क्यों बेवजह मोहब्बत की तलाश में फिरता है दरबदर,

खुद से इश्क़ करके तो देख,न रहेगी दुनिया में कोई फिकर,

जब खुद का प्याला भरोगे,तभी तो दूसरों को बाँट पाओगे,

न तलब होगी किसी और की जब खुद को अपना वैलेंटाइन बनाओगे।"


पूरा हाल तालियों से गूँज उठा।


"शुक्रिया पेपरविफ़ मुझे मेरे वैलेंटाइन से मिलवाने के लिए।जिस दिन हम सब खुद से प्यार करना सीख जाएँगे उस दिन कभी किसी को कोई ग़म न होगा।तो पहचानों खुद को,अपनाओ खुद को,बोलो खुद से "आई लव यू।सुबह उठ के सबसे पहले एक हग खुद को।सबसे पहली चॉकलेट खुद के लिए।खुद को भी कभी गुलाब देकर तो देखो यारों।लव यू ऑल की जगह लव यू माइसेल्फ बोला करो यारो।दुनिया खुदबखुद आपसे प्यार करने लगेगी।करके देखो ज़रा।"


ज़ोर ज़ोर से सीटियां बजने लगी।शालू वापस अपने पुराने अंदाज़ में थी।उसके बच्चे और पति खड़े होकर तालियाँ बज रहे थे।वैलेंटाइन डे मनाने के लिए किसी और की जरूरत नहीं होती।आईने में दिखने वाला इंसान ही आपका वैलेंटाइन होता है।प्यार करके तो देखो एक बार उससे।


क्या आपको आपका वैलेंटाइन मिला??

©डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा



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Dr.Shweta Prakash Kukreja

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