सर्दियाँ आते ही पापा का बैग पैक हो जाता था।पिछले कई सालों से उन्हें सर्दियों में पुराने घर जाते देख रही थी।
"मैं भी चलूँ क्या पापा?"हर बार की तरह इस बार भी मैंने पूछा।
"तुम क्या करोगी वहाँ बच्चे?आफिस भी दूर पड़ेगा तुमको।"बैग पैक करते हुए पापा बोले।
"ऐसा क्या है वहाँ पापा?"मैंने पास जा कर पूछा।
"लाडो वहाँ सर्दियों में मुझे गर्माहट का एहसास होता है।मेरी शादी मेरी पसंद से नहीं हुई थी।पर फिर भी मैंने तुम्हारी माँ को कभी कोई कमी नहीं होने दी।जब तुम पैदा हुई तो वो हम दोनों को छोड़ कर चली गयी।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि तुम्हें अकेले कैसे पालूंगा।बहुत सर्दी थी उन दिनों और तुम बस रोए जा रही थी।मैं परेशान था कि घंटी बजी।
"हाय हाय,बच्चा हुआ है घर में,हमें भी शगुन दे दो।"कुछ किन्नर ताली बजा रहे थे।"बच्चा हुआ है पर माँ गुज़र गयी है उसकी।दूं क्या शगुन?"मैं ज़ोर से चिल्लाया और अंदर आया।तुम बस रोये जा रही थी और मैं असहाय तुम्हे देख ज़ोर ज़ोर से रोने लगा।"
"हाय इतनी सर्दी में बच्चे को ऐसे रखा है।"पीछे से आवाज़ आयी।उन किन्नरों में से एक अंदर आयी और उसने तुम्हें शाल में लपेट अपनी छाती से चिपका लिया।मेरे आँसू पोछते हुए बोली,"जाओ दूध ले आओ।"
मैं कटोरी में दूध लाया।"हाय ऐसे पीयेगी क्या ये?"उसने तुम्हें गोद में उठाया और ब्लाउज खोल एक स्तन से तुम्हे चिपका लिया।फिर रुई को दूध में डुबा अपने स्तन पर टपकाने लगी।मैं स्तब्ध खड़ा देखता रहा।
"हमारे शरीर में दूध नहीं बनता है।पर बच्चे को तो पिलाना था न।"तुम्हे थपथपाते हुए बोली।वो जाने को हुई तो तुम्हारा वास्ता दे मैंने रोक लिया।अब तो वो माँ बन तुम्हें पालने लगी।ये मोह के धागे ऐसे ही होते है।शायद तुमने भी उसे अधूरेपन को पूरा कर दिया था।उसकी बिरादरी के लोग आते यो वह उन्हें भगा देती।उसकी ममता की गर्माहट ने तुम्हे सर्दी से बचाये रखा।
साल भर की थी जब मुझे डेंगू हो गया।उसने मेरा भी ध्यान रखा।पता नहीं क्या रिश्ता था पर उसका साथ मुझे अच्छा लगता था।उस रात जब शहर कोहरे के आग़ोश में सोया हुआ था मैं ठंड से काँप रहा था।उसने देखा तो और भी कम्बल मुझ पर डाल दिये।पर मैं ठिठुर रहा था।वह धीरे से मेरे कंबल में आ गयी और मुझसे लिपट गयी।मैं भी उसकी छाती से चिपक गया।उस दिन मुझे प्रेम की अनुभूति हुई।उसके शरीर की गर्माहट ने सर्दी का असर खत्म कर दिया।रात भर मैं उसकी बाहों में लिपटा रहा।उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।मैं समझ न पाया।
सुबह वह जा चुकी थी।वह जानती थी हमारे प्रेम की गर्माश समाज की सर्द हवाओ का सामना नहीं कर सकती थी।बस सर्दियाँ आते ही मुझे उसकी याद आती है।उस घर में आज भी मैं उसे महसूस कर पाता हूँ।ये सर्द मौसम मैं उसकी यादों के कंबल में गुज़ार देता हूँ।मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे प्रेम का ऐसा रूप पहली बार महसूस कर रही थी।
©डॉ.श्वेता प्रकाश कुकरेजा
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
wow shweta ji bahut hi khub
Babitaji ab apne kaha to mujhe bhi vishwas ho gaya ki ye badiya hai,shukriya❣️
Please Login or Create a free account to comment.