मुट्ठी भर आसमान
कहाँ चाहत थी मुझे आसमाँ की, न आरज़ू थी चाँद तारों की, अरमानों को पंख मिल गए है, बस दरकार है मुट्ठी भर आसमाँ की।

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by shwetaprakashkukreja1

27 Feb, 2022

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