शीर्षक-अन्नपूर्णा
पंडित गिरधारी जी अपने बचें खुचे सामान को समेट रहे थे।
उधर गांव के लोग हाथ जोड़कर कह रहे थे पंडित जी
रुक जाइए गांव छोड़कर मत जाइए हम जो रुखा सुखा खाएंगे आपको भी खिलाएंगे।
पंडित जी ने हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहां की इस सैलाब ने सब कुछ डूबा दिया, जब हमारे भोलेनाथ ही नहीं रहेंगे तो हम यहां रुक कर क्या करेंगे।कहते कहते उनका गला रूंध गया।
गांव के मुखिया ने कहा पंडित जी पूरा गांव ही इस सैलाब में डूबा है
इस बार बाढ़ से कुछ ज्यादा ही नुकसान हो गया।
मुनिया का हाथ पकड़े पंडित जी स्टेशन की तरफ बढ़ गए स्टेशन पहुंचते ही मुनिया ने पूछा बाबा हम कहां जा रहे हैं? बिटिया के सर पर हाथ फेरते हुए कहा हम मुंबई जाएंगे वहां मैं कुछ काम कर लूंगा और तू अच्छे से पढ़ाई करना।
रात के करीब 7:00 बज रहे थे ट्रेन बनारस पहुंची वहां नए टीटी साहब चढ़े उन्होंने टिकट चेक किया बोला इस बच्चे का भी दिखाइए।
पंडित जी बोले साहब हमारे पास इतने पैसे नहीं थे और बच्चे का क्या टिकट लेना मैं गोद में बैठा लूंगा, टीटी ने गुस्से से उनके समान के साथ उनको ट्रेन से नीचे उतार दिया।
उदास होकर थोड़ी देर वहीं स्टेशन पर बैठे रहे तभी मुनिया ने पूछा हम अब क्या करेंगे बाबा मुझे तो बहुत भूख भी लग गई है।
पारले जी बिस्किट मुनिया को पकड़ते हुए पंडित जी ने बोला लगता है भोलेनाथ की यही इच्छा है चल बिटिया तुझे गंगा घाट दिखाता हूं और वहां इस समय आरती हो रही होगी आरती के बाद वहां भंडारा भी होता है।
मुनिया हाथ पकड़े तेजी से घाट की तरफ जा रही थीं आज बहुत भीड़ थी पंडित जी ने कहा बिटिया हाथ नहीं छोड़ना।
तभी आगे पुलिस वाले ने रोक लिया बोला आप आगे नहीं जा सकते,वहां भगदड़ मच गई है।
उदास और हताश पंडित जी वापस लौटने लगे तभी उन्हें एक मंदिर दिखा सोचा थोड़ी देर यहां पर विश्राम कर लेते हैं।
वही मंदिर से प्रसाद लेकर पानी पिया और बैठ गये मुनिया से बोले जानती हो बिटिया यह शिव की नगरी काशी है जब प्रलय आता है तब भी यह नगरी नहीं डूबती इसको भोलेनाथ अपने त्रिशूल पर उठा लेते हैं और हां शिव जी को अन्नपूर्णा मां ने आशीर्वाद दिया था कि काशी नगरी में कोई भूखा नहीं सोएगा।
यह सुनते ही मुनिया खुश हो गई सच बाबा हमें आज खाना मिलेगा। पंडित जी ने हां में सर हिला कर कहा आज हम लोग इसी मंदिर में रुकेंगे।
यह बाहर चबूतरा है ना हम यही सो जाएंगे।
करीब रात को 11:00 बजे थे मुनिया को भूख से नींद नहीं आ रही थी
उसने बोला बाबा अन्नपूर्णा मां कैसी दिखती है? पंडित जी ने बोला बहुत सुंदर है, लाल साड़ी में रहती हैं, माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाती है,पांव में महावर लगे रहते हैं और छम छम पायल भी पहनती है, बड़ी ही मनमोहक है माता। कहानी सुनाते पंडित जी की आंख लग गई।
मुनिया मन ही मन सोचने लगी बाबा मुझको भुलवा रहे हैं ऐसा सच में थोड़ी होता होगा।
कुछ देर बाद मंदिर के पास एक कार रूकती है। उसमें से एक महिला लाल साड़ी में छम छम करते हुए आती है ।मुनिया आश्चर्य से देखती है, वह बहुत ही सुंदर स्त्री थी बाबा उठो देखो कौन आया है, पंडित जी आश्चर्य से उठ कर बैठ जाते हैं।
वह महिला आकर कहती है मैंने घाट पर भंडारे का आयोजन करवाया था।भगदड़ के कारण कोई भोजन कर ही नहीं पाया । मैंने सत्यनारायण भगवान की कथा सुनी है मुझे कम से कम 5 लोगों को भोजन करवाना है,आप लोगों ने तो शायद भोजन भी कर लिया होगा कृपया मेरा व्रत पूर्ण करने के लिए थोड़ा सा भोजन ग्रहण कर लीजिए, खाने का दो पैकेट पकड़ाया।तभी मुनिया बोली अन्नपूर्णा मां दो पैकेट और दे दो ना मुझे बहुत तेज भूख लगी है।।
स्वरचित अप्रकाशित
मौलिक रचना।
संजिता पांडेय।।
25/7/2020
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
दिल को छू लेने वाली कहानी, बहुत सुंदर। विश्वास पर ही दुनिया कायम है।
मौमिता बागची जी हृदय तल से धन्यवाद 🙏🏼 आपके शब्द मुझे उत्साहित करते हैं।।
बहुत खूबसूरत कहानी
सुरभि जी आपका हृदय से आभार। 🙏🏼🙏🏼
Wah
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