मानव आज स्कूल से बहुत ही उदास लौटा था। वह चुपचाप एक कोने में बैठा कुछ सोच रहा था। माँ ने जब पूछा तो उसने रुआँसे से स्वर में कहा "आज सभी बच्चे मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे। सबके पास रंग-बिरंगे और नए स्केट्स थे लेकिन मेरे स्केट्स तो सबके सामने पुराने लग रहे थे। कल से मैं स्केटिंग नहीं करूँगा, मैंने निश्चय कर लिया है।"
माँ ने उसे पुचकारते हुए कहा, "अच्छा, अच्छा ठीक है इस बारे में हम बाद में बात करेंगे। अभी तुम भोजन कर लो, फिर दादी माँ के साथ मंदिर भी तो जाना है। आज वैसे भी मैंने तुम्हारे मनपसंद राजमा चावल बनाए हैं।"
लेकिन आज तो राजमा चावल का नाम सुनकर भी मानव के चेहरे पर मुस्कान नहीं आई। वह गहरी सोच में ही डूबा रहा। यह देखकर उसकी माँ भी परेशान हो गई। वह समझ नहीं पा रही थी कि नन्हे से मानव को यह कैसे समझाए कि पिताजी की नौकरी चले जानेे के कारण वह खर्चे में कटौती कर रहे थे और अभी नए स्केट्स नहीं खरीद सकते।
मानव की दादी यह सब देख रही थी। दादी ने माँ को अपने पास बुला कर कहा, "तुम चिंता मत करो, मैं मानव को समझा लूँगी।" दादी की बात सुनकर माँ के दिल को तसल्ली हुई और वह रसोई घर में खाना परोसने चली गई।
दादी ने मानव से कहा, "बेटा जल्दी जल्दी खाना खा लो मंदिर जाने के लिए देरी हो रही है"। मानव दादी का लाडला था। वह उनकी बात कभी न टालता था। मानव ने झटपट भोजन खत्म कर लिया और मंदिर जाने के लिए तैयार हो गया।
जाने से पहले दादी ने मानव की माँ से कहा, "अरे वो जो मानव के जूते और कपड़े छोटे और पुराने हो गए हैं ना वो मुझे दे दो"। मानव ने हैरानी से पूछा, "दादी आप मेरे पुराने जूतों और कपड़ों का क्या करेंगी?" दादी ने मानव से कहा, "तुम्हें अभी थोड़ी देर में ही पता चल जाएगा। अब जल्दी चलो कोई हमारा इंतजार कर रहा है।"
मानव सोचता रहा कि न जाने दादी उसे कहाँ ले जाने वाली हैं। मंदिर में पुराने जूतों और कपड़ों का वह करेंगी क्या?
मंदिर के पास वाली गली में एक मकान बन रहा था। दादी मानव को वहीं ले गई। वहाँ कुछ मज़दूर काम कर रहे थे। उनके दो बच्चे भी वहाँ थे जो मानव से उम्र में थोड़े से छोटे थे। वह दोनों बच्चे मज़े से खेल रहे थे। ना तो उनके पास खिलौने थे औरे ना ही पैरों में जूते। उनके कपड़े भी कुछ फटे से ही थे परंतु उनके चेहरे पर मुस्कान बहुत ही बड़ी थी।
दादी ने उन दोनों बच्चों को प्यार से अपने पास बुलाया और मानव के पुराने जूते और कपड़े उन्हें दे दिए। पुराने जूते और कपड़े पाकर भी वह बच्चे बहुत ही खुश हुए। उन्होंने दादी को धन्यवाद किया और फिर से खेलने में लग गए। उन बच्चों को देखकर मानव के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।
मानव अब जान गया था कि दादी उसे क्या समझाना चाहती थी। वह व्यर्थ ही दुखी हो रहा था। कम से कम उसके पास अपने स्केट्स तो थे, थोड़े पुराने हुए तो क्या हुआ। दुनिया में ऐसे भी बच्चे हैं जिनके पास ना तो पैरों में पहनने के लिए जूते हैं, ना ही कपड़े और ना ही खिलौने। फिर भी वह खुश है क्योंकि वह अपनी तुलना दूसरों से नहीं करते बस हर हाल में खुश रहने में विश्वास रखते हैं। मानव अब बड़ी सी मुस्कान लिए मंदिर गया और वहाँ उसने ईश्वर को धन्यवाद भी किया।
घर जाते ही मानव ने माँ से कहा, "मैं स्केटिंग जरूर करूँगा, स्केट्स थोड़े पुराने हुए तो क्या हुआ, हैं तो बहुत ही बढ़िया, आज भी बड़ी स्फूर्ति से चलते हैं। स्कूल में रंगीन स्केट्स का क्या काम, हम स्कूल में सादी यूनिफार्म भी तो इसलिए पहनते हैं ना कि सब एक समान लगें। मैं सबको बोल दूँगा मेरे स्केट्स सबसे अच्छे हैं क्योंकि यह मेरे माता-पिता ने मुझे बड़े प्यार से दिलवाए थे। प्यार से दी हुई हर चीज़ अनमोल होती है, है़ं ना दादी माँ?"
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ मानव, सही कहा, तुम बहुत समझदार हो गए हो और हम सबको तुम पर गर्व है।"
यह सब सुनकर माँ भी बहुत प्रसन्न हुई और मानव को गले से लगा लिया।
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वाह
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