गुंजा सुबह सोई हूई ही थी की उसके पेट में असहनीय दर्द हो रहा था,दर्द से उसकी आँखें खुल गई थी उसने माँ को पुकारा पर माँ शायद बाहर थी।वो किसी तरह बाथरूम गई, उसने अपने कपड़ों पर खुन देखा उसे दर्द भी बहुत हो रहा था।खुन देखकर वो समझ गई आज पहली बार उसे भी महावारी आई है जो उसके दोस्तों को भी आ चुकी थी।गुंजा ने माँ को आवाज दी माँ जल्दी आ ना पेट दुख रहा है।इतना बोलकर वो बिस्तर पर आ गई और लेट गई।
क्या हुआ बोल ..आज जल्दी जाग गई?माँ पेट में बहुत दर्द हो रहा है।क्यों ?क्या हो गया तुझे रात तक तो ठीक थी?माँ वो ..उसने अपने कपड़ें दिखाएं।ओ कोई बात नहीं चल गर्म पानी से नहा ले मैं सब दे देती हूंं।माँ ने सब बातें गुंजा को समझा दी।
गुंजा आज स्कूल नहीं जा।?.हम्म ..शर्म से गुंजा बाहर ही नहीं निकल पा रही थी।माँ ने उसे आराम करने को कहा पर किसी भी चीज को हाथ न लगाने की सख्त हिदायत।उसे रूम में ही नीचे एक बिस्तर दे दिया सोने को।अजीब सा महसुस कर रही थी,हालांकि माँ को भी देखा था पर जब बात अपने पे आई तो आज उसे बहुत बुरा लग रहा था और शर्म भी बहुत आ रही थी।
खाना भी उसे अलग थाली में मिला,वो बिल्कुल परेशान हो गई एक तो पहली बार महावारी आई थी उसकी तकलीफ और उससे ज्यादा ये सब ,जो उसे और तकलीफ दे रहे थे।वो स्कूल तो नहीं गई पर घर पे इस तरह अलग बैठाना, अलग खाना, ऊफ हर बार यही होगा उसके साथ।शर्म और बढ़ गई जब हमेशा की तरह पापा ने आते के साथ पानी मांगा और वो न जा पायी" छी" कितनी शर्म आई उसे।माँ भी न बस समय के साथ बदलना नहीं है ।उसने सोचा सब को जताना जरूरी है क्या।
हर चीज बदल गई पर ये रिवाज नहीं बदलेंगे क्या?क्यों अलग धलग रहना पड़ता है ?क्यों अलग थाली में खाना ?क्यों अलग सोना? हर सदस्य से जैसे अलग कर दिया जाता हैं ।गुंजा के पास आज बहुत सारे सवाल थे पर जबाब एक ही, हमने किया तुझे भी करना है।गुंजा लेटी लेटी बस यही सब सोचे जा रही थी क्यों ऐसे रहूं मैं "महावारी ही तो है महामारी तो नहीं" फिर ऐसा क्यों ?महावारी तो भगवान ने एक वरदान दिया है, फिर इसे अभिशाप क्यों बना दिया?क्या मुझे हर बार अभिशाप की तरह इसे ढोना होगा।
आज भी बहुत जगहों में महावारी के समय अलग रखा जाता है।बदलाव तो आऐं हैं पर अभी भी कुछ जगह यही होता है जो गुंजा के साथ हुआ ।सोच बदले और सबको आगे बढ़ने दे।महावारी कोई बिमारी तो नहीं जिससे अछूतों जैसा व्यवहार करें।समय बदला है सोच भी बदले।
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