आज अपने आपको आईने में देखा खूब निहारा.. कुछ पल देखती रह गई मैं अपने आपको। उस चेहरे को जिसे मैं बड़े शौक से संवारा करती थी। उन हाथों को जिसपर मैं मेंहदी बड़े शौक से लगाया करती थी,उन हाथों को भी बड़े गौर से देखा।
उन काले लम्बे बालों की चोटी को आगे अपने कंधों पर लाकर मैंने बड़े इठलाते हुये आईने में निहारा। कितनी लम्बी चोटी थी, हमेशा कहीं जाना होता था माँ सबसे पहले उसे ही तैयार होने को बोलती थीं-जा अपने बाल बना, आधे घंटे तो तेरे बाल में जाते हैं। कभी पीछे कमर तक लटकती चोटी तो.. कभी खुला छोड़ दिया करती थी। कभी गालों पर कभी माथे पर ये खेला करती थीं। आज इन लटों को फिर से मैंने आईने में देखा।
पर ये क्या...कब से आईना निहार रहीं हूँ पर इन सब में मुझे कुछ भी नहीं दिखा पर क्यों? बालों,.. गालों.. अपने चेहरे को गौर से आईने में निहारा। कई बार.. उन सब को ढूंंढ़ा पर नहीं मुझे तो कुछ भी नहीं दिखा... कहाँँ गए वो सब।
उनकी जगह ये क्या है...चेहरे पर मलीनता, बालों में झांंकती सफेदी और ये रूखे से हाथ।ये क्या हालत हो गई है मेरी.. क्या मैं ही हूँ?आईना तो सच ही बोलता है भला ये मुझसे झूठ क्यों बोलने लगा।
बार-बार अपने आपको गौर से देखा सचमुच मैं कितना बदल गई हूँ। आईने ने जैसे मेरे कानों में धीरे से कहा गौर से देख तु ही है.. पर तुने अपने आपको खो दिया है.. अपनों के बीच खुद को देख.. तू... तू न रही।
आईने में अपने आपको फिर से देखा सचमुच वो सब जो मेरे साथ थे सब खो गए धीरे-धीरे। मैं क्या से क्या बन गई। मैंने अपने आपको खो दिया था।
घर परिवार में.. सब की जरूरत में... मैंने अपनी जरूरत को भी नहीं देखा।अपनेआप को भूलाकर मैं... मैं ही न रही अब। सब का ध्यान और ख्याल रखने में मेरी चुक मुझपर ही हो गई। चेहरे की आभा ही खो गई.. अभी तो मेरे साथ की सब औरतें कितनी जवान नजर आती हैं कितने अच्छे से बन संवर कर रहती हैं पर.. मैंने तो जैसे अपनेआप को कामों से बाहर निकल कर खुद को देखा ही नहीं।
वो सब भी तो काम करतीं हैं फिर, फिर मैंने अपने आप पर क्यों नहीं ध्यान दिया? राजीव कितनी बार तो मुझसे कह चुके थे कभी आईने में खुद को देखो थोड़ा ख्याल करो पर.. मैंने तो अनसुना ही कर दिया था।
आज मैंने खुद को ही खो दिया.. आज अगर बच्चों ने न कहा होता तो शायद अब भी मैं आईने की धीमी आवाज नहीं सुनती या यूं कहो अनसुना कर देती।
"मम्मी आप दूसरी आंटी जैसी क्यों नहीं रहतीं? मम्मी देखो, वो लोग कितने अच्छे से तैयार होकर रहती हैं" और उसपर पति देव की आवाज "रहने दो बेटा, मम्मी को नौकरानी बनकर ही रहना अच्छा लगता है।"
जैसे मेरे दिल को अंदर तक कुछ भेद दिया था। बहुत चुभन हुई पहली बार और सबके जाने के बाद आज आईने से बातें करने बैठ गई और खुद को निहारने लगी।
सचमुच में... मैं.. नहीं थी। मैंने खुद को नहीं पहचाना तो बच्चे और पति तो ठीक ही कह रहे थे। मुझे शायद और ..पहले आईने से बात करनी चाहिए थी पर मैंने तो किसी की आवाज ही नहीं सुनी, न पति की न बच्चों की और न अपने आईने की।
नहीं, अब और नहीं खोने दूंगी मैं अपनेआप को। ये बाल मेरे फिर से झूमेंगे आज ही इसे डाई करती हूँ और फेशियल भी करा लेती हूँ साथ में हाथों और पैरों को भी साफ करके नेलपॉलिश लगा लूंगी और हाँ महीनें में एक दिन अपने आपको जरूर दूंगी।
आज आने दो बच्चों और पतिदेव को मैं... मैं ही न दिखूंगी। आज बस मेरा दिन होगा अपने आपको संवारने का।
सचमुच, हम अपने कामों और घर की जिम्मेदारी में इतने खो जाते हैं कि खुद का ही ख्याल नहीं रखते और रिश्तों में कहीं न कहीं खटास आने लगती है।आईना तो हमें रोज अपना अक्स दिखाता है और कानों में धीरे से आकर कहता भी है, जरा खुद को देखो पर हम समझ ही नहीं पाते या यूं कहें सुनकर भी अनसुना कर देते हैं।
पर अब नहीं हम अपने आपको भी समय देंगे। अपने आप को कहीं खोने नहीं देंगे, वादा है मेरा और आपका।
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