आज शाम टहलने गई तो गार्डन में रुचि मिली जो अपनी बेटी के साथ थी वहां,बेटी को बड़ी जिम्मेदारी से देख रही थी पास बैठी थी और बच्चे खेल रहे थे वहीं पर।
चल रूचि हम टहलते हैं बच्चे खेल रहें हैं तब तक घुमना भी हो जाएगा।
बच्चे हैं छोड़कर नहीं जा सकती कौन, कैसा है क्या पता यहां?रोज तो देख रही हो बेटीयों के साथ क्या हो रहा है पल भर छोड़ने में जी घबराता है मेरा तो,...रूची ने कहा तो मुझे भी सही ही लगा डर तो है सभी में अब खासकर बेटीयों को लेकर।गलत तरीके से छुना आजकल रोज सुनने को मिल जाती है जो नजदीकी ही होते हैं जिनके पास बच्चे रहते हैं।सही लगा सच है ख्याल तो रखना ही पड़ता है! अंधेरा हो चुका है तो सही ही किया रूची ने।
बेटी हमारी आन, बान, शान है फिर आज ऐसा क्यों कि उसी बेटी को हमें खुले आसमां में उड़ने भी नहीं दे पा रहे।मैं वहीं बैठ गई मन फीर एक बेटी की दशा पर चला गया जिसे कुछ दिन पहले बेदर्दी से रौंदकर मार डाला गया।ओह कितना रोई होगी , चिल्लाई होगी वो रहम की भीख मांगी होगी लेकिन जरा भी दया नहीं आई उसे।
बेटी क्यों नहीं सुरक्षित हैं।मैं बैठे बैठे सोचने पर मजबुर हो गई आखिर क्यों इस और हम जा रहे कि आजादी के नाम पर बेटीयों को पांच मिनट भी नहीं छोड़ पा रहे।बेटी कल बड़ी होगी तो उसे समझाना कितना मुश्किल होगा ओह सचमुच बहुत बड़ी बात है बेटी की मां होना ,उसे दरिंदों से बचा कर छुपाकर रखना।
जो बेटी हमारे बीच नहीं रही उसके दर्द का क्या? उसके मन में उठे सवालों का क्या?
एक सवाल पुछ रही- बेटी
मां बोलो तुमने मुझे क्यों जन्म दिया
रोज खौफ में जीती हूं
हैवानों से डर डर कर रहती हूं
क्योंकी मैं एक बेटी हूं?
प्यार बलिदान की मूरत हो तुम मां
केवल जन्म देती नहीं पलकों
पर बिठाती हो तुम मुझे मां
मेरी बातें बिन बोले समझ जाती हो
मेरी भावना,जरूरतों को भी समझ जाती हो
एक सवाल पुछ रही हूं आज
बेटी को मर्यादा का पाठ पढ़ाते सब
बेटों को क्यों भूल जाते हैं सब मां?
बेदर्दी से रौंदकर लूट ली
फिर आबरू एक बेटी की
देखो इज्जत तार तार कर दी
आज फिर एक बेटी की
कब तक बचती मैं भी मां,
आज उसने मुझे भी डस लिया
चिल्लाई, रोई,गिड़गिड़ाई मैं भी
नोच रहे थे जब सब मेरी आबरू,
सिसक रही थी तड़प रही थी
तेरे आंचल में आने को मां
रहम की भीख मांग रही थी
अपनी इज्जत बचाने को मैं
याद बहुत आई तेरे प्यार
भरे आंचल की मुझको
काश छिपा लेती तु मुझे बचा
लेती उन दरिंदों से इज्जत मेरी
बहुत कुछ कहना चाह रही थी
चिल्लाकर आंसू बहा रही थी
जलती बेटियों को बचा लो,
एक फरमान तुम भी सुना दो
एक सवाल का ज़बाब बता दो
कब तक जलती रहेगी बेटी?
कब तक सिसकती रहेगी बेटी?
कब तक खौफ में जीती रहेगी?
बस आखिरी यही अब इच्छा है मेरी
नहीं चाहिए वो सम्मान जो
एक दिन का मोहताज हो
दें सको तो दे दो वो मान
जो बेटी के सर का ताज हो
बुझे मन से मैं भी घर आ गयी पर मन अशांत है बेटी को लेकर सबकी बेटी हम सबकी बेटी कब तक इस तरह आखिर दम तोड़ती रहेगी?ज़बाब शायद ही मिले।
आज बेटी का दर्द मैंने बयां किया है अपने शब्दों में अगर आपको पसंद आई हो तो लाईक कमेंट और फाॅलो जरूर करें।
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