"सुगंधा तुम मायके तो जा रही हो पर जल्दी आना" प्लीज़! मुझे खाने में बहुत तकलीफ हो जाती है सुगंधा के पति राजीव ने कहा। अच्छा जी तो खाने की तकलीफ होगी इसलिए जनाब को मेरी जरूरत है? सुगंधा ने पूछा। "पापा को डेंगू हो गया था, दो दिन पहले पर!.. माँ ने बोला बुखार है। आज घर आ गए पापा... तो बताया माँ ने कि डेंगू था। हम सब.. परेशान न हो इसलिए पापा ने मना किया था। कमजोरी बहुत है इसलिए सोचती हूँ कुछ दिन रह लूंगी ..पापा-माँ को अच्छा लगेगा।
"नहीं यार बस तुम्हारे बिना ये घर अब घर नहीं लगता, शादी को एक साल हो गया, अब तक तुम्हारे बिना अकेला रहा नहीं हूँ! इसलिए।"
"हाँ-हाँ समझ गई जल्दी आ जाऊँगी। पापा की तबीयत खराब है इसलिए मैं जा रही हूँ पर तुम हो सके तो दो दिन बाद आ जाना छुट्टी मिले तो उन्हें भी अच्छा लगेगा। जब से शादी क्या हुई दो दिन से ज्यादा तुमने मुझे रहने नहीं दिया है।"
"मतलब तुम जल्दी नहीं आनेवाली?" राजीव ने पुछा।
"ऐसा नहीं है जब तक पापा ठीक नहीं हो जाते तब तक रुक जाउंगी। माँ अकेली हैं। भाभी भी नहीं आ पा रही उनका आठवां महीना चल रहा है आपको तो मालूम है, इसलिए मैं ही उनके पास थोड़ा रहूंगी तो उन्हें अच्छा लगेगा राजीव।"
"पापा ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। अपने हर तकलीफ को छिपा कर बस हमारी खुशी ही देखी थी। जानते हो राजीव भैया हमेशा कहते थे, पापा तुझे ज्यादा प्यार करते हैं, मैं तो पूरा समय उनसे डांट ही खाता हूँ, तू लड़की है इसलिए बच जाती है, पर अब समझ आता है लड़की नहीं बेटी थी मैं उनकी, बेटीयाँ तो पापा की प्यारी होती हैं। उन्हें पता होता है बेटी दूसरे के घर चली जाएगी, बेटे तो पास ही रहेंगे। बेटी इसलिए प्यारी हो जाती है," सुगंधा की आँखे गीली हो गई।
"हाँ ठीक है चलो तुम्हें छोड़ देता हूँ।" राजीव सुगंधा को बस में छोड़ आया था। सुगंधा बैठे-बैठे अतीत के गलियारों में खो गई।
"पापा-पापा देखो न भैया बोलता है तेरे से गंध आती है इसलिए तेरा नाम सुगंधा है।" पापा मम्मी आपने मेरा नाम सुगंधा क्यों रखा?
"तू मेरी राजकुमारी है इसलिए, तुम्हें पता है एक राजकुमारी का नाम था सुगंधा वो बहुत सुंदर थी बिल्कुल तेरी जैसी।" बस रुकी तब जाकर मैं बचपन से बाहर आई और मन ही मन मुस्कुरा दी कि कैसे पापा हमेशा मुझे फुसला लेते थे।
बस से उतर कर सीधा घर की तरफ टैक्सी पकड़ी बस जल्द से जल्द पापा से मिलना चाहती थी उन्हें देखना चाहती थी। माँ ने दरवाजा खोला। आँखो की चमक मुझे देखकर बढ़ गई थी माँ की "माँ पहले क्यों नहीं बताया? मैं आ जाती न...और डॉक्टर ने क्या-क्या बोला है? "सुगंधा एक ही सांस में सवाल दागे जा रही थी।
"अरे तू रुक तो मैं बोलूं" माँ ने कहा। "तू किसी को बोलने दे तब न।"
तब तक सुगंधा पापा के कमरे में पहुंच चुकी थी। "पापा कैसे हो आप?" पापा के गले लग गई वो।
ठीक हूँ। तू कैसी है? और क्यों आई तू? सिर्फ बुखार ही तो है ठीक हो जाएगा पापा ने कहा।
"अच्छा तो ठीक क्यों नहीं हुआ?" सुगंधा ने पूछा?
"अब तू जो आ गई। बस देखना! अब तुरंत इनमें सारी ताकत आ जाएगी, ऐसे तो बड़े बूढ़े हो गए थे।" माँ ने हंस कर उनका मजाक बनाया पापा की आँखें नम हो गई थी मुझे देखकर और वो छिपाने की कोशिश भी कर रहे थे।अपने आप को संभाला और मेरी तरफ आँख मारते हुऐ कहा "बूढ़ा मैं नहीं, बूढ़ी तो तेरी माँ हो गई है" और सब खिलखिला कर हंस पड़े।
सचमुच मेरे आने से दोनों में जैसे जान आ गई हो। एहसास हुआ जैसे बचपन में हमें उनकी जरूरत होती है उन्हें भी अब हमारी जरूरत है। पापा डेंगू से कमजोर हो गए थे, अब मैंने सोच लिया था साथ लेकर जाउंगी फिर भैया के घर तो जाना ही है इनका समय अच्छे से कट जाएगा।
मेरे आने से जैसे उनकी आधी कमजोरी गायब हो गई थी। अब समझ आया था "बेटियाँ क्यों प्यारी होती हैं क्यों उनकी जान होती हैं?" हाँँ पापा... मम्मी ही बूढ़ी हो गई हैं, और फिर से पापा के गले लग गई थी मैं। पापा माँ को बुड्ढी बुलाने लगे थे जान बूझकर। माँ को बुड्ढी सुनना बिल्कुल पसंद न था। "बूढ़ा मैं नहीं बूढ़ी तेरी माँ हो गई हैै" है न ! पापा मुझसे बोलते तो मैं बस मुस्कुरा देती। एक सुकून मेरे चेहरे पर और एक शांति मन में मेरे भी थी यहाँ आकर मैंने अच्छा किया।
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