लड़की है, चुप रहा कर तु,कितनी बार बोला है पर नहीं बड़-बड़ करती रहती है हमेशा...दादी बोले ही जा रही थी।सोनु मन ही मन बोली"दादी खुद तो बड़ बड़ कर रही और मुझे बोल रही है बड़- बड़ मत कर"।अरे छोरी कितनी बार तुझे समझाऊं तुझे कल को दसरे घर जाना है इतना मत बोला कर पर नहीं तेरी माँ ने ही बिगाड़ा है तुझे।
क्या हो गया मांजी इतना क्यों डाँट रहीं है सोनु को?अरे बहु इसे कितनी बार बोला भाई के साथ तु बराबरी मत किया कर हर बात पर उससे बहस करती है कल को ससुराल जाएगी तो नाक कटा कर आएगी देख लेना।
मांजी ऐसा कुछ भी नहीं है।सोनु समझदार है और बच्चे हैं आपस में झगड़ेगें नहीं तो कहां जाएंगे।पर बहु मोनू तो लड़का है चल जाएगा पर इसे तो दूसरे घर जाना है जरा सोच तो सही तुने ही बिगाड़ा है मुझसे तो न देखा जाएगा ये सब हाँ...।
मांजी सोनु को दूसरे घर जाना है या नहीं ये सब बातें उसे अभी नहीं समझानी, अभी बस उसे पढ़ना है अपने पैरों पर खड़ा होना है,सोनु और मोनू में मैंने कभी फर्क नहीं किया तो आप भी मत करें।आपका समय और अभी में बहुत बदलाव हैं मांजी पहले लड़कियों को दबा कर मायके से ही रखा जाता था! और ससुराल में भी दब कर रहना है यही सिखाया जाता था पर अब नहीं मांजी!अब तो लड़कियों को बराबर का हक है मैं दोनों बच्चों में अंतर नहीं कर सकती! आप भी सोनु को ये सब न बोले प्लीज.. उसके दिमाग में गलत असर होगा।
हाँ हाँ मैं ही तो गलत हूँ बेकार मैं गांव से आई मेरा टिकट कटा दे नहीं रहना मुझे तुम लोगों के साथ मैं ही गलत हूँ जो करना है करो मुझे क्या.. जब सर पर आकर बैठेगी तो पता चलेगा।
बड़बड़ाती हुई मांजी अपने कमरे में चली गई पर मैं सोचने को मजबूर हो गई इतने बरसो से मांजी हमारे साथ हैं फिर भी हर पाँच छह महीनों में यही कहानी हो जाती है! हर बार समझाती हूँ फिर भी उनका वही राग बजता है! लड़की है चुप रहा कर,लड़की हो कम बोलो,लड़की हो चुप रहना सिखो।
छोटे जगहों में तो क्या हालत होती होगी? सचमुच इसे समझना और समझाना आज भी आसान नहीं है।पर ये भी खुशी की बात है आज हर जगह लड़कियों ने बाजी मारी है पर इन्हें समझाना आसान नहीं है पर नामुमकिन भी नहीं कभी न कभी उन्हें समझ आ ही जाएगी जब सोनु भी कहीं अपना मकाम बनाएगी।औरतें तो पहले कमजोर थी अब नहीं।
मुझे मेरी ही कविता याद आ रही थी
"पैदा होते ही बेचारी करार दिया जाता था।
बड़ी होने पर पहले यही समझा दिया जाता था,
पराया धन हो तुम,तुम परायी अमानत हो।
हाँ बार बार यही बताया जाता था।
ससुराल में भी चैन नहीं अपनों से ही दबा दिया जाता था। कुछ बोले अगर तो यही समझा दिया जाता था।
औरत हो तुम्हें दब कर ही रहना है हर सितम तुम्हें ही सहना हैं।
अब सोच नयी आई हैं अब औरत भी साँस ले पाई हैं।
हाँ हर जगह अब अपनी पहचान बनाई है।
हर हाल में बस जीती थी अब शान से चलती हैं
हाँ ये वही औरत हैं"।
नहीं मैं अपनी बेटी को अब नहीं सुनने दुंगी .."लड़की हो चुप रहो तुम"।हमें तो हमेशा ही लड़की होने का गलत एहसास कराया गया,लड़की हो कर कोई पपा कीया था!हर समय कुछ लोग एहसास करा जाते थे!माँ पापा ने तो कभी नहीं अंतर कीया! फीर मैं अपने बच्चों में ये कैसे होने दूं?हाँ जिसे जो समझना समझे मेरी बेटी मेरी आन बान और शान है मेरे बेटे जैसी बराबर हक है उसका मैं आगे से ऐसा नहीं होने दूंगी।
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