हम सब ने किन्नरों को कई बार देखा है पर उसके दर्दे को कभी देखा?, शायद नहीं।मैंने भी नहीं देखा पर मुझे हमेशा एक बार उन्हें नजदीकी से जानने की इच्छा होती थी ।पर कैसे समझ नहीं पाती थी ।एक दिन मैं अपने ऑफिस में बैठी थी तभी दो किन्नर आऐं।वो दोनों आते तो अक्सर थे पर मैं बात नहीं कर पाती थी बस कुछ पैसे लेकर आशिर्वाद देकर चले जाते थे।पर इस बार मैने उन्हें रोक लिया
"बैठो".. मैंने बोला।
"नहीं आप सब के साथ बैठने की हमारी औकात नहीं है मैडम"।
"क्यों"
"मैं और तुम सब भगवान ने बनाया फिर औकात दिखाने वाले हम कौन हैं बैठो" मैंने कहा।
"नहीं मैडम अगर कोई भी इज्जत से बात कर ले वही बहुत है, हम लोग के लिए नहीं तो लोग गालियां भी दे देते हैं।आप बैठने की बात करती हो हम तो बस गालियाँ खाने के लिए ही पैदा हुए हैं बस"।
एक दर्द आँखों में साफ दिख रहा था।मैंने फिर भी उसे बैठाया।
"तुम कहाँ रहते हो" मैंने पुछा।
"हम सब बस आज यहाँ कल वहाँ लेकिन घर तो है हम सब किन्नर एक ही बस्ती में रहते हैं क्योंकि हमें कोई और जगह रहने को देता ही नहीं आप ये सब क्यों पुछ रही हो आज",उसमें से एक किन्नर ने सवाल दाग दिया।
मैं तो हड़बड़ाहट में कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।
" बस ऐसे ही" .. हलक से किसी तरह निकला।
"मैडम आप हम किन्नरों के बारे में जानना चाहते हो न" ...
"हाँ" मैंने डरते डरते कहा।
"मैडम हम सब के बारे में जानने के लिए है क्या? जिसको उसके परिवार ने ही छोड़ दिया हो ,जिससे भगवान ने भी अपनी दुश्मनी निकाली हो उससे क्या जानना ।हम सब रास्ते पर, ट्रेन में,हर जगह घुमते हैं, पैसे मिल जाते हैं कुछ गाली देकर ,कुछ आशिर्वाद देने के लिए खुशी से भी।शादियों में, बच्चे होने पर नाचने गाने में लोग बुलाकर इज्ज़त दे देते हैं।बस और क्या सुबह से रात हो जाती है।हमारी जिंदगी में कुछ नया नहीं होता बस रोज गालियाँ ही मिलती हैं।हमारी तो नसीब ही खोटा था तो क्या करें"।
"तुम सब ऐसा क्यों सोचते हो अपने आप को क्यों कोसते हो" मैंने कहा ।इसमें तुम्हारी क्या गलती।लड़का,लड़की सब अलग हैं तुम भी अलग हो तो क्या हुआ तुम अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जियो।क्यों मजबूर होकर यही काम करना जो हर किन्नर करते आएं हैं जरूरी तो नहीं।अगर हैं भी तो इज्ज़त से रहो क्यों किसी की गालियाँ सुनना अब नहीं.. अपने आप को कम मत समझो। भगवान ने सबको बराबर हक दिया है गलत हम इंसान करते हैं।
मेरे इतना कहते ही उनके आँखों से जैसे एक सैलाब बह निकला वो जोर जोर से रोने लगी ।मैंने शांत कराया उन्होंने बहुत सारे आशिर्वाद दिया और आँखो में नयी चमक लेकर गए फिर आने का वादा करके।वो तो चले गए पर उनके सीने में छुपा दर्द मैंने महसुस किया बहुत करीब से ।कभी कभी लगता है क्या कसुर था इनका जो इतने अपमान भरी जिंदगी जी रहे है और तो और अगर कोई अच्छी जिंदगी जिना चाहे तो भी नहीं जीने देते इन्हें।इनका दर्द यही समझ सकते हैं।हम और आप नहीं
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