जिंदगी हमें बहुत सारे मोड़ पर ले कर जाती है और हर मोड़ पर हमें अलग अनुभव होता है। एक ऐसा ही मोड़ है बचपन का जिसमें बहुत सारी यादें हम से जुड़ी होती हैं। जिसको याद कर चेहरे पर मुस्कान के साथ खुशी सुकून नजर आता है।
बालपन एक ऐसा समय जो सबसे बिंदास और मस्ती से भरा पल होता है ।बचपन की कुछ बातें हमें याद रहती हैं कुछ भूल जाते हैं। परिवार के लोगों से अक्सर बचपन की बातें सुनने को मिलती हैं जिसे सुना अच्छा भी लगता है।बचपन की एक बात आप सबसे शेयर कर रही जो मैं कभी नहीं भुली।बचपन जिसमें हमें खुद का ज्ञान नहीं होता और किसी के कहने पर कुछ भी कर बैठेते हैं।
एक किस्सा है मैं सात साल की थी और मौसी की शादी में गयी थी।मेरे मामा बच्चों के साथ बहुत हिले मिले थे मजाकिया भी बहुत थे। शैतानी में हम बच्चों को भी मात कर देते थे।हम और भी भाई बहनें सब थे साथ खाते ,खेलते थे।घर के बाहर एक मंदीर थी जो हमारी ही थी उसमें चारों तरफ बैठने के लिए बैंच बने थे ।हम सब वहां खेलते रहते थे।एक दिन हम सब के खेलते खेलते आपस में लड़ाई हो गई और एक भाई जो सबसे बड़ा था उसने हम सबको मंदिर में बंद कर भाग गया अंदर।सब शादी के काम में बिजी मंदीर की तरफ कोई नहीं।वो भाई मजे से घर जाकर खा-पीकर आराम से सो गया।काफी देर मंदीर नहीं खुली तो हम मंदीर में भी चैन से नहीं रहे और शादी शादी खेलने लगे।
एक भाई और एक बहन थी दूर की उसकी शादी कराने लगे।एक पंडित बना एक मां, पापा इस तरह शादी सम्पन्न कर हम अंत में थक चुके थे इसलिए मंदिर में ही बैठ गयें अंदर ही धीरे धीरे सो गयें हम सब ,लेकिन घर के अंदर तुफान मचा था बच्चे कहां गयें ।
मंदिर में चक्कर लगाकर बाहर से खोजकर सब चले गयें और हम सब अंदर बंद।बाद में भाई ने डर से आकर दरवाज़ा खोलकर बाहर निकाला चेतावनी के साथ किसी को बताना नहीं मैंने बंद कीया था ।ये बातें आज भी बचपन की मैं कभी नहीं भूलती और जब भी आज भाई बहन मिलते हैं मंदीर की शादी को याद कर हंसते हंसते लोटपोट हो जाते हैं।
आपके पास भी होगी बहुत सारी बातें बचपन की.. है न ...जिसे याद करते ही मुस्कान बरबस ही आ जाती है।
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
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