आखिर कब तक

बेटी पढा़व बेटी बचाव फिर रैप ..क्यों कहां है समाज और उसके खोखले संस्कार जो केवल बेटी के लिए बने हैं बेटों के लिए नहीं।

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Resmi Sharma (Nikki )
Resmi Sharma (Nikki ) 03 Oct, 2020 | 1 min read



निक्की शर्मा 'रश्मि' मुम्बई

Niktooon@gmail.com


20 साल की लड़की आखिर जिंदगी की जंग हार गई। दम तोड़ गई उसकी सांसे और साथ में कुछ हसीन सपने जो उसने खुली आंखों से देखे होंगे हार गई एक बार फिर एक बेटी।जहाँ बेटी दिवस धूमधाम से मनाई जा रही थी वही एक बेटी के साथ हैवानियत का नंगा नाच कुछ मनचलों ने किया शर्मसार होता देश, लेकिन शर्म कुछ लोगों को कहां आती है। एक बार फिर देश में उबाल, गुस्सा विरोध प्रदर्शन शुरू होगा और फिर खत्म हो जाएगा। जीभ काट देना, हड्डी तोड़ देना बच्ची के साथ गैंगरेप के बाद यह घिनौनी हरकत करते हुए लोगों को तो शर्म नहीं आई साथ ही उन्हें भी शर्म कहां जो इस पर सियासत कर रहे। राजनीति है भाई ...यहां तो कुछ भी हो सकता है। रात भर में सियासत चमकानी होती है रात भर में किसी की सियासत बिगाड़नी होती है। चार आरोपी पकड़े गए हैं फिर भी राजनीति हो रही कोई धर्म से जोड़ रहा कोई कर्म से अब भला कौन बताए धर्म और कर्म की परिभाषा।

 अपराध और अपराधी की कोई परिभाषा नहीं होती ना धर्म होता है। राजनीति करने वाले थोड़ी तो शर्म की होती। हाथरस की बेटी आज मौत के मुंह में गई और तुम राजनीति कर रहे। ओछी मानसिकता रखने वाले यह जान लें धर्म जाति अपराध मिलाकर अपराध का दायरा छोटा बड़ा करने से कुछ नहीं होगा बस सोच बदलनी होगी।


आज भारत देश की मां गंगा भी शर्मसार होगी उस में डुबकी लगाकर पाप धोने आने वालों को लेकर। पर्वत हिमालय भी शायद रो रहा होगा इतना विशाल हृदय होकर भी वह एक बेटी की रक्षा नहीं कर पाया और नदियां रो रही होंगी जिसमें इस देश की बेटी की अस्थियां प्रवाहित की जाती होगी। बस रोती नहीं है तो राजनीति, रोती नहीं है तो बस समाज में असंवेदनशील लोग। हाथरस की घटना पर सियासत करना शर्मसार करती है। यह याद रखें सियासत चमकाने वाले यह आग आज हाथरस की बेटी को लगी है तो कहीं ना कभी तुम्हारे घर की बेटी तक भी पहुंच सकती है। अपराध कब कहां हो जाए कहा नहीं जा सकता। अपराधियों पर नकेल नहीं डाला तो देश यूं ही शर्मसार होता रहेगा।


 रात के अंधेरे में सब को जला देना कुछ तो इशारा करता है परिजनों को देखने तक ना देना क्या कहा जा सकता है खुद समझने वाली बात है।


दुर्भाग्यपूर्ण बात है नारी देश में आज भी सुरक्षित नहीं, घर में सुरक्षित नहीं। दरिंदों की हैवानियत के कारण एक बेटी फिर हमारे बीच नहीं है।न्याय दिलाने के साथ पीड़ित परिवार की मदद करनी होगी। अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए तुरंत.. ना कि इंसाफ की लड़ाई में एक बार फिर सालों गुजर जाए।संवेदनशील बनकर इस पर सोचना होगा। सत्ता पर बैठी सरकार एक बार फिर बेटी बचाओ के बारे में सोचने को मजबूर होगी। बेटी बचने के बाद इन हैवानों से आखिर उन्हें कैसे बचाया जाए बेबस लाचार परिवार को सुरक्षा तक नहीं मिलती।


 तमाम दल के नेता बलात्कार की शिकार और मौत हो गई लड़की पर राजनीति कर रहे अरे कुछ तो शर्म करो इसके पहले सत्ता हाथ में थी तो क्या कर लिया। बेटी तब भी असुरक्षित थे आज भी असुरक्षित है। राजनीति से बाहर निकल कर जरा सोचो मानसिकता तभी बदलेगी जब सोच बदलेगी। नारी के प्रति गंदी नजर वालों को तुरंत सजा मिलनी चाहिए लेकिन इसके बजाय सालों इंसाफ के लिए पीड़ित परिवार लड़ता रहता है। अपराधियों को पता है इतना आसान नहीं हमारे देश में सजा मिल जाना। सजा तो लड़की और उसके परिवार वालों को मिलती है। सालों दर्द झेलते हैं इंसाफ की लड़ाई में कितने तो चुप रह जाते हैं।


आखिर कब तक एक बेटी यूं ही दम तोड़ती रहेगी इज्जत तार-तार कर देने वाले थोड़ी तो शर्म करो बेटी तुम्हारे घर भी होगी।


समाज किस ओर जा रहा एक बार चिंतन करके देखें ।कानून नहीं हमें सोच बदलनी होगी,लड़कों को सिखाना होगा सम्मान करना नारी का। समाज के सभी लोगों और कानून-व्यवस्था से आगे अपेक्षा होगी लाचारी,बेबसी और तड़प से नारी बाहर निकल सके एक समय ऐसा लाएंं.. जहां बच्चियां, औरतें बेखौफ होकर घूमे।आशा है एक सम्मान ,बेखौफ, आजादी और बेवाकपन से जीने का अधिकार जरूर मिलेगा। खुद को बदलें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें भारतीय संस्कृति में नारी के महत्व और सम्मान को बताएं समझाएं ।मां,बहन और बेटीयों के पवित्र रिश्ते को बताएं।मानसिकता बदलेगी तभी सब कुछ बदलेगा।नजरिया बदलें.. सोच बदलेगी.. तभी गंदी मानसिकता से आजादी मिलेगी।बच्चीयों ,महिलाओं को सम्मान देना बचपन से बतलायें तभी सोच अच्छी रहेगी सम्मान नारी के प्रति रहेगा।नयी सोच नया बदलाव लाएं । नारी और भी सशक्तिकरण की तरफ कदम आगे बढ़ा पाएगी।नारी पुरी तरह सशक्त हो उठेगी बस जरूरत है समाज में थोड़े से बदलाव की एक और पहल की। 


भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत ही सम्मान और महत्व दिया गया है, धरती पर नारी के अनेक रूप हैं। नारी को दुर्गा , काली, चंडी एवं सरस्वती के रूप मानने वाले लोगों की मानसिकता कहां लुप्त हो गई है समझ नहीं आ रहा। नारी की स्थिति पहले की तुलना में काफी हद तक सुधार हुआ है, नारी शिक्षा को बढ़ावा मिलने से प्रगति पथ पर अग्रसर होती रही है। 

राजनीति हो या व्यवसाय हर जगह नारी की भागीदारी है, आज नारी के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं है इसके बिना, यह सृष्टि अधूरी है। भारतीय समाज को हमेशा पुरुष प्रधान माना गया यह लेकीन अब 21वीं सदी में बदलाव पूरी तरह आया और आज नारी पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं, फिर भी जो सम्मान, जो इज्जत नारियों को मिलनी चाहिए वह मिलती ही नहीं है। जिस तरह के अमानवीय व्यवहारों से वह गुजरती है उसका अंदाजा भी शायद लगाना मुश्किल है।

एक तरफ हम उन्हें आगे बढ़ाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ अभद्रता की हद पार करते हैं,आजकल महिलाओं,छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अभद्रता की सारी सीमाएं टूट गई है।आज एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब हम बलात्कार जैसी अभद्रता की घटना नहीं सुनते हैं। 4 महीने की बच्ची से लेकर महिलाएं तक सुरक्षित नहीं है।आज फिर इक्कीसवीं सदी में पहुंचकर भी समाज की सोच नहीं बदल रही। क्यों.. नारी के सम्मान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा,अपनी सोच बदलिए। महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम तो बनते हैं, पर क्या सजा हुई उन्हें इस कानून से इंसाफ मिला,?नहीं..... बच्चियों के साथ भी हैवानियत का सिलसिला थम ही नहीं रहा.. फिर भी फांसी की सजा नहीं सुनाई जा रही।


डर ..किसी को कानून का हो तभी तो..पर... डर कैसा... जब गलती की सजा नहीं मिलती तो गलतियां तो आगे भी करते ही जाएंगे। यह बात कोई क्यों नहीं समझ पाता, हैवानियत की हद पार कर जिस तरह आज देश के हर हिस्सों में महिलाओं, बच्चीयों के साथ ये सब हो रहा, अगर फांसी की सजा सुनाई जाती तो घटनाएं कम जरूर होती। नारी शक्ति की बातें करते हैं, नियम बनाते हैं पुरुष और फिर उसी नारी को कुचल डालते हैं, क्योंकि पुरुष प्रधान देश है,।

कहने को आज भी नारी कदम से कदम मिलाकर चल रही है पुरुषों के साथ ताल से ताल मिला रही है पर नजरिया आज भी पुरुषों का नहीं बदला अगर चार बातें हंसकर कर लो तो गलत समझ कर फायदा उठाने की कोशिश करते हैं,मौका पाने पर रौंंदने से बाज नहीं आते, आखिर क्यों.. क्योंकि हमारे देश का कानून कमजोर है। कुछ पुरुषों के कारण दुसरेे शरीफ पुुरूषों पर भी शक की निगाहें दोड़ती है।गुस्सा फुटता है उस खोखले कानून पर जो एक नारी की इज्जत से खेलने वाले को फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचा पाई तभी तो आज हर जगह नारी शक्ति की गाथा के साथ साथ अभद्रता की कमी भी सुनने को मिलती है।

 "*वाह रे नारी तेरी यही कहानी छाती में दूध आंखों में पानी 

21 वीं सदी में भी ना बदली तेरी कहानी"

आखिर कब तक बलात्कार होती रहेगी जिंदगी तबाह होती रहेगी बेटी लुटती रहेगी "आखिर कब तक" ? जबाब दें समाज ,कानून, नेता और वो सत्ता पर बैठे लोग जो "बेटी पढ़ाव बेटी बचाव" के नारे लगाते हैं।

"आखिर कब तक बेटी खौफ में रहेगी" ?





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Resmi Sharma (Nikki )

resmi7590

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Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 4 years ago last edited 4 years ago

    संदेशप्रद आलेख। आज की सच्चाई

  • Babita Kushwaha · 4 years ago last edited 4 years ago

    nice

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