सुमन अपने हाँथ तेजी से चला रही थी।एक तो दिवाली के काम ऊपर से इतने मेहमान। वो फटाफट काम खत्म कर रही थी ।ऊफ इतने बरतन फिर से।सारे बरतन साफ करके उसने सफाई की।दिवाली की शाम जो थी मेहमान भी चले गए।सुमन ने फटाफट सारे काम निपटाकर बच्चों को तैयार किया और खुद भी तैयार होने लगी।सोनु और टिन्नी दो प्यारे प्यारे बच्चे।
माँ...माँ..जल्दी चलो न कितनी देर लगा रही हो!गोलू मोलू बंटी सब इंतजार कर रहे होगें!और वो छोटी सी चुहीया पिंकी भी चलो न जल्दी।हो गया बस आती हूँ सब रख लिया तुमलोगों ने ?हाँ अब तुम बस चलो।पापा भी बुला रहे हैं हमसब ने मिलकर सारा सामान गाड़ी में रख लिया है चलो...हाँथ खिंच कर सोनु ने अपनी माँ सुमन से कहा।
चल बाबा ..चल ही तो रही हूँ, और हाँ जल्दी आना है घर में पुजा भी करनी है।सुमन ने कार में बैठते हुए सोनु से कहा।हाँ माँ जल्दी आऊँगा तुम चलो तो सोनु ने कहा।सुमन कार में बैठ गई और पुराने यादों में खो गई।कैसे वो पिछली दिवाली में इन बच्चों से मिली थी। सब रात को घुमने निकले थे तो रास्ते में एक अनाथालय था वहाँ पर काफी चहल पहल थी सुमन ने उत्सुकतावश वहाँ देखा बहुत सारे बच्चे आज नजर आ रहे थे सोनु भी अंदर जाने की जिद करने लगा था तो हमसब चौकीदार से बात करके अंदर गए थे।
बच्चों को देखकर दिल पसीज सा गया था,इतने प्यारे प्यारे बच्चे बेचारे इस हाल में सोनु के सवाल भी वहीं से शुरू हो चुके थे लेकिन किसी तरह उसे बाद में सब बताउंगी कहकर टाला था नन्हा सा अपने पाँच साल के सोनु को क्या समझाती वहाँ।बच्चों के साथ सोनु को अच्छा लग रहा था।
प्रदीप मेरे पति फटाफट सारे बच्चों के लिए मिठाई और पटाखें ले कर आ गए थे सब के चेहरे पर मुस्कान देखकर जो सुकून मिली थी मुझे वो शायद कभी नहीं मिली थी।काफी देर वहाँ रुकने के बाद हम सब घर तो आ गए पर दिमाग जैसे वहीं छोड़ आये थे ध्यान बस उधर ही रहा बच्चों के पास।
सोनु तो सुबह उठते ही गोलु,बंटी,पिंकी सब के नाम भी गिनाने लगा बच्चों को तो बस खुशी जहाँ मिली वहीं के होके रह जाते हैं।सोनु की जिद पे हम सब फिर नये साल में बच्चों से मिलने गये वही खुशी और दमकता चेहरा देखकर मैंने सोच लिया था अब हर त्योहार मैं इन बच्चों के साथ ही मनाऊंगी। पाँच सौ की मिठाई बड़े लोगों को देकर क्या मिलता है उनका कोई मोल नहीं होता उनके लिए पर अगर वही पैसे से इन बच्चों के लिए मिठाई और कपड़ें दे दूं तो जो खुशी मिलेगी उसका तो कोई मोल ही नहीं होगा।
आज फिर दिवाली में वहीं जा रहीं हूं पर अब सोनु दस साल का हो गया है और सारी तैयारी अब खुद करता है।अब तो उसकी एक छोटी बहन भी आ गई है पर अभी वो बहुत छोटी है ।
माँ ..माँ उतरो हम आ गए हैं। बच्चों का चमकता चेहरा हम सब का इंतजार कर रहा था सचमुच बहुत सुकून और शांति मिलती है उन्हें खुश देखकर, कुछ पल की ही खुशी हम इतना तो दे ही सकते हैं।आप भी एकबार ऐसा कर के देखें बहुत सुकून मिलेगा।
एक दिवाली ऐसी भी मना कर तो देखो।
धन्यवाद
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