पैदा होते ही बेचारी करार दिया जाता था।बड़ी होने पर पहले यही समझा दिया जाता था । पराया धन हो तुम। तुम परायी अमानत हो। हाँ बार बार यही बताया जाता था। ससुराल में भी चैन नहीं अपनों से ही दबा दिया जाता था। कुछ बोले अगर तो यही समझा दिया जाता था। औरत हो तुम्हें दब कर ही रहना है हर सितम तुम्हें ही सहना हैं।अब सोच नयी आई हैं अब औरत भी साँस ले पाई हैं।हाँ हर जगह अब अपनी पहचान बनाई है।हर हाल में बस जीती थी अब शान से चलती हैं हाँ ये वही औरत हैं।
नयी उड़ान
नयी उड़ान नया जज्बा के सर थ उड़ान भरती आज की नारी
Originally published in hi
Resmi Sharma (Nikki )
12 Nov, 2020 | 1 min read
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