रिश्ते यूं ही नहीं बनते

रिश्तें बनी रहे इसके लिए प्यार, मान, सम्मान लेना और देना दोनों आना चाहिए

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Resmi Sharma (Nikki )
Resmi Sharma (Nikki ) 19 Nov, 2021 | 1 min read

 *रिश्ते यूं ही नहीं निभते*

निक्की शर्मा "रश्मि"

मुम्बई (महाराष्ट्र)


संध्या .…क्या कर रही बेटा ? इधर आना। शकुंतला जी ने अपनी नई नवेली बहू को आवाज़ दी।

 आई मांजी....संध्या ने कहा 

जी मां... कुछ कहा आपने ? 

आजा .....इधर बैठ मेरे पास। शकुंतला जी ने बहुत प्यार से संध्या का हाथ पकड़ कर अपने पास पलंग पर बिठा लिया। संध्या ने देखा पलंग पर एक से बढ़कर एक साड़ी रखी थी ज्वेलरी बॉक्स भी साथ में थे। बेटा यह मेरी साड़ियां है तेरे ससुर जी ने बड़े प्यार से खरीदी थी। जहां भी जाते थे मेरे लिए जरूर नई साड़ियां लेकर आते थे। अब तक यह संभाल कर रखी है उनके जाने के बाद से ऐसे ही पड़ी है, पहनने को जी ही नहीं चाहता है मैं चाहती हूँ अब तू इसे पहने तो मुझे अच्छा लगेगा।


 क्यों नहीं मांजी ये तो बहुत सुंदर साड़ियां हैं संध्या ने कहा और एक प्यार भरी नजर अपनी सासू माँ पर डाली उनकी आंखें नम थी पति को याद करके गोरा रंग, लंबे बाल ओहहह आज भी सासू मां कितनी सुंदर लगती है लेकिन शादी साड़ियां उनके रूप को कम कर रही थी। संध्या कुछ सोच में डूब गई तभी अचानक आवाज आई कानों में..

 अरे बोल ना तुझे नहीं पसंद ? तो कोई बात नहीं रहने दे शकुंतला जी ने कहा 


नहीं माजी... यह तो बहुत सुंदर है और मैं जरूर पहनूंगी। 


ठीक है फिर आज तो तु शाम को पुनीत के साथ डिनर पर जाने वाली है ना तो इसमें से कोई पहन ले और जो साड़ियां पसंद है वह लेती जा कमरे में रख ले, जब मन हो पहन लेना तेरे ससुर का प्यार और आशीर्वाद समझकर और हां यह बॉक्स भी लेती जा मैचिंग करके पहनना । मेरी तो उम्र नहीं रही दूसरा कोई और है नहीं की उसे दूँ। पुनीत और तू ही है जो है सब तेरा ही है इसलिए रख ले।


 मांजी आप भी ना... हद करती हैं। आपके पास है तो मुझे अपने कमरे में रखने की क्या जरूरत है। आप सब संभाल कर रखो और जब भी मेरा मन होगा मैं मांग कर लेकर पहन लूंगी हक से। दोगी ना या मना कर दोगी? संध्या ने हंसते हुए कहा अगर मना करेंगी तो रख लेती हूँ. संध्या ने हँसकर कहा साथ में शकुंतला जी भी जोर से हँसी।

 पगली ...।

संध्या ने एक खूबसूरत सी नीली साड़ी उठा ली शकुंतला जी की तरफ देखा और कहा डिनर पर यह पहन लूँ? 

हां ... बहुत प्यारी लगेगी मेरी बच्ची शकुंतला जी ने दोनों हाथों से नजर उतारते हुए कहा। संध्या अपने कमरे में आ गयी और सोचने लगी। पापा के जाने के बाद मां जी कितनी अकेली हो गई सब कुछ भूल बैठी हैं ना पहनना और ना सजना संवरना एक बिंदी तक नहीं लगाती। दो साल हो गए पापा को गए कितनी प्यारी प्यारी साड़ियां मांजी ने खरीदी थी और कितनी यादें जुड़ी होंगी इन साड़ियों से सोचती संध्या ने कुछ और भी फैसला ले लिया। शाम को डिनर के लिए तैयार हुई पुनीत तैयार था तभी संध्या शकुंतला जी के कमरे में गई और उनकी अलमारी खोलकर देखने लगी।

 

क्या हुआ ?कुछ चाहिए तुझे ?शंकुतला जी ने पुछा।

बताती हूं ..संध्या ने हल्के कलर की साड़ी निकाली और शकुंतला जी की तरफ बढ़ा दी। मांजी यह साड़ी कब की है? यह तो कोलकाता से लेकर आए थे पुनीत के पापा शकुंतला जी की आंखें मानो चमक उठी। मां बहुत सुंदर है और चलिए उठिए इसे पहन कर तैयार हो जाएं हम सब बाहर चल रहे हैं।

नहीं बहू तुम सब जाओ... मैं कहीं नहीं जाती ।अब मुझे कहीं मन नहीं लगता बस घर के कार्यों में व्यस्त रहती हूँ। यह सब शोभा नहीं देता मुझे।

क्या शोभा नहीं देता मां ? रिश्ते यूं ही नहीं बनते आप उठिए और इसे पहनकर हमारे साथ चलेंगी आप। पापा का प्यार है इसमें और वह आपके साथ हैं, फिर आप अकेली कहां।शोभा तो परिवार से होती है हम सब साथ जाएंगे यही तो सबसे बड़ी शोभा है। अब आप जिद ना करें चलिए उठिए। फटाफट पहन कर आइए शकुंतला जी की एक न चली संध्या ने उन्हें वह साड़ी पहन कर तैयार होने भेजा और पलंग पर इंतजार करने लगे हल्के रंग की साड़ी में शकुंतला जी निकली। 

बहुत सुंदर. माँ । छोटी सी बिंदी कमरे से लेकर संध्या दौड़ी आई और मांजी के माथे पर लगा दी।

 वाह !अब मेरी मां भी सुंदर लग रही हैं संध्या ने गले लगकर बड़े प्यार से कहा।

 अरे... बिंदी नहीं लगा सकती हटा इसे।

 नहीं मां ये काली बिंदी है आप लगे रहने दे ।

शकुंतला जी ने अपने आपको आईने में देखा उनका चेहरा आज चमक रहा था यह चमक उन्हें बहु संध्या के प्यार से मिला था। बहू बना कर लाई थी लेकिन आज बेटी बन मेरी फिक्र कर रही ।आंखें नम थी।

 अरे रे... रोना नहीं है संध्या ने प्यार से कहा।

 चलोगे तुम लोग या अभी यहीं रह जाओगे कहते-कहते पुनीत कमरे में दाखिल हुआ

 मां बेटे की नजरें मिली पुनीत देखता ही रह गया। सच्चे रिश्ते यूं ही नहीं बनते प्यार, अपनापन, फिक्र एक दूजे के लिए हो तो रिश्ते ताउम्र निभते हैं।बहू भी बेटी हो सकती है बस प्यार, अपनापन देने और लेने की जरूरत है।

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