*मुक्ति*
निक्की शर्मा रश्मि
मीरारोड
खिड़की से झांकती मुग्धा आज सुकून महसूस कर रही थी कभी इन्हीं खिड़कियों से झांकते ही उसका मन खराब हो जाता था। अजीब सी उथल-पुथल मच जाती थी दिल में।याद करने लगी मुग्धा उस पल को....
"अरे यह झाड़ू कैसे लगी है इतना कचरा यहां... मां जी.. आपसे एक झाड़ू भी ठीक से नहीं लगता। दिनभर की भागदौड़ के बाद घर आओ तो यहां कचरा से भरा मिलता है .....दो पल की सुकून शांति नहीं। चाय तो बना दो मैं थक गई हूँ" ....रीता की आवाज जोर-जोर से रोज ही इस समय आती थी।
यह रोज का ही नजारा था बूढ़ी अम्मा रोज ही मुझे वहां बैठी नजर आती मायूस सी। बूढ़ी अम्मा रोज की तरह चाय बनाकर बहू को कमरे में देती। वह इतनी बूढ़ी होकर भी कितने काम करती है दिन भर ।बाई तो सुबह खाना बनाकर साफ सफाई कर चली जाती है उसके बाद भी पूरा दिन इन्हें काम करते ही देखती हूं।
मुग्धा कि तंद्रा एक बार फिर टुटी जोर की आवाज से "मांजी मेरा सर दर्द हो रहा है आप ही खाना बना दो प्लीज "संजय को देर होगी आने में मैं तब तक आराम कर लेती हूं"
फिर एकबार आवाज आई।
बूढ़ी अम्मा फिर रसोईघर में घुस गयी मैं भी बालकनी में चाय पी रही थी।यही पल मुझे अच्छा लगता था एक घंटे सुकून से मिलते थे।
मैं चाय की चुस्कियों के साथ बूढ़ी अम्मा का सोचने लगी। इतने काम भला उनसे हो फिर भी उन्होंने कोशिश की है हर काम करने की।नीचे झांका देखा अम्मा आंगन में बैठ सुस्ता रही थी थकान से बेसुध। इस उम्र में भला कामकाज अस्सी के पार दिखती थी अचानक वह बैठे-बैठे गिर पड़ी ।
मैं ऊपर से नीचे दौड़ी दरवाजा जोर से खटखटाया वह मां जी गिर पड़ी है..... मैंने चिल्लाया। "मांजी गिर पड़ी है आंगन में".... मैं चिल्लाते आंगन की तरफ भागी मेरे पीछे बहू भी दौड़ी। अम्मा के हाथ पैर सब सुन्न थे। संजय को फोन किया एंबुलेंस आई अम्मा को हॉस्पिटल ले जाया गया मैं भी साथ थी। मन घर जाने को तैयार ना था अम्मा को ब्रेन हेमरेज था और यह सुनकर में धम से बैठ गई।
जिस उम्र में उन्हें आराम कि जरूरत थी तब भी वह काम कर रही थी फिर भी दो मीठे बोल बहू के नहीं सुनती थी। मेरा कमरा ठीक उनके आंगन और चबूतरे के ऊपर था सब दिखता था बेटा तो दिन भर बाहर रात 9:00 बजे आता था लेकिन बहु 5:00 बजे शाम को आ जाती थी फिर भी दो पल अम्मा को चैन न लेने देती है। उसे लगता था अम्मा दिन भर आराम फरमाती हैं। दिन भर कपड़े सुखाना, सब्जी काट कर रखना और साफ-सफाई कुछ ना कुछ करते ही दिखते थी।
अम्मा चैन से सो रही थी थकान दूर करने को शायद। उनका चेहरा मुरझा सा गया था। मैं घर वापस आ गई लेकिन रात भर अम्मा के बारे में सोचती रही सुबह सुनने में आया अम्मा अब नहीं रही। दिल धक सा कर रह गया। खिड़की से झांका बिल्कुल शांत अजीब सी उदासी बिखरी थी। अब वह बूढ़ी अम्मा कभी नजर नहीं आएंगी। जिंदगी की थकान मिटाने के लिए सो गई है उन्हें शांति सुकून तो मिलेगा । शांति सुकून भगवान के पास ही उन्हें नसीब हुआ।
मुग्धा खिड़की पर खड़ी हो सोचने लगी सुकून और शांति से अम्मा जहां से आई थी वहीं चली गई। यह आंगन सूना है लेकिन उन्हें मुक्ति तो मिली। मुग्धा ने जोर की सांस ली और घर के कामों में लग गई।दिमाग में अभी भी बातें चल रही थी यह की "उम्र दराज लोगों के साथ ऐसा व्यवहार उचित था ? नहीं बिल्कुल भी नहीं भगवान सजा तो देंगे।
देर सवेर लेकिन देते जरूर है यह याद रखनी होगी। उन सब की कर करी सुनने से मुक्ति मिल गई थी अम्मा को। चलो.. अभी इस बात का सुकून तो है मुग्धा ने एक गहरी साँस ली।
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