आत्महत्या... ये सुनते ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते है, हैं न और ढेरों सवाल भी ,क्यों किया, किसने किया।हर तरफ फिर यही सुनने को मिलता है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था!उसे कुछ परेशानी थी तो बोलना चाहिए था!कुछ तो गलत बात होगी तभी उसने ऐसा किया होगा!बहुत सारे सबाल होते हैं।
पर कोई ये नहीं समझता आखिर उसने ऐसा कदम उठाया क्यों!दोषी बस बना देना है बच्चों को ही। बच्चे बेचारे किस कसमकस से गुजर रहे है ,आज किसी को फुरसत ही नहीं है देखने की।जो बच्चे आत्महत्या करने की सोचते हैं वो कोई एक दिन सोच कर ऐसा कदम नहीं उठाते।
आज परिवार के नाम पर सिर्फ माँ ,पापा,भाई और बहन बस।अगर उसमें भी दोनों काम करनेवाले हो तो वो भी ना के बराबर।आखिर बच्चों को समय दे तो कौन।पहले दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, मौसी सब से घर भरा होता था।कभी कोई आता तो कोई जाता।बच्चे को अकेलापन खलता ही नहीं था।
बच्चे हर बात अपने दादा -दादी, नाना- नानी से शेयर कर लेतें थे।पर अब कहाँ ये सब! अब तो बस कभी ये क्लास, कभी वो क्लास बस उनकी जिंदगी वहीं तक रह गई है। बच्चों में अकेलापन बढ़ रहा है ।
बच्चे अपनी बातें कह ही नहीं पाते क्योंकि उनकी बातें सुनने वाला कोई भी नहीं है।कहे भी तो किससे?आया से?आज के बच्चे बेचारे कुछ समय ही तो चाहते है,हमसे पर वो भी नहीं दे पाते ।
बच्चों को समय दे समझे उनकी बातों को ध्यान से सुनें वो क्या कहना चाहते है।समझे उसे अपने नजदीक लाऐं नहीं तो वो धीरे -धीरे दूर होते जाएगे। फिर हम सब कुछ भी नहीं कर सकते।बच्चे सब अच्छे होते है उन्हें बस प्यार और समय दें।
परिवार के साथ रहने की कोशिश करें।अकेलापन उन्हें न खलने दें।अगर वो परेशान हैं तो बाहर ले जाऐं और खुब सारी बातें करें देखें वो कैसे आपको अपनी सारी बातें बता देगें आप उसके नजदीक रहेंगे, तभी तो वो आप से हर बात कर सकते है।
बच्चे प्यार के भूखें होते है उन्हें प्यार से अपना बनाए और दादा -दादी ,नाना -नानी सब के साथ थोड़ा समय बिताने दें। फिर बच्चों के चेहरे की मुस्कान देखते ही बनेगी ।बच्चो को जो चाहे करने दे,अपनी पसंद न थोपे।थोड़ा आप समझे और उसे समझाये मगर प्यार से।बच्चों को बस परिवार और थोड़ा समय दें।उनकी मनोदशा को समझें।
बच्चों को दें भरा पुरा परिवार और सबका प्यार।
धन्यवाद
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