परेशानी हो या आँधी हो दिन रात श्रम करते हैं।
बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।
मेहनत की कमाई भी कौड़ी में व्यापारियों को देते हैं।
देखो कैसा दौर है आज पल पल पैसे को तरसते हैं।।
ग़रीबी कहो या लाचारी , किस्मत की है मारी ।
तपते तन ,जलते मन व दिल में दर्द रहे भारी ।।
मन से कठोर होकर , मेहनत दिन रात करते हैं ।
देखो कैसा दौर है आज पल पल रोज वो मरते हैं ।।
सुलगती साँसें ,मचलता मन छुटते पसीने से ।
चमकता उनका तन ,पाँव के छाले महीने से ।।
आह न निकलती कांटे पाँवों में रोज चुभते हैं ।
देखो कैसा दौर है आज आत्महत्या भी वो करते हैं।।
परिवार पालते हैं हर दर्द को सीने से जकड़ते हैं।
सिसकियों को दबाकर वो रोज खुद से लड़ते हैं।।
पसीना बहता है तन से आँखों से आँसू बहते हैं ।
देखो कैसा दौर है आज पल पल वो रोज मरते हैं।।
मौसम भी जब दगा दे जाता आँधी व तुफान से।
आँखों में नमी लेकर वह कहता है भगवान से ।।
भरी गर्मी हो या दुपहरी कभी नहीं वो रुकते हैं ।
बोझा सर पे लेकर चलते श्रमिक नहीं थकते हैं।।
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
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