एक सवाल पुछ रही- बेटी
मां बोलो तुमने मुझे क्यों जन्म दिया
रोज खौफ में जीती हूं
हैवानों से डर डर कर रहती हूं
क्योंकी मैं एक बेटी हूं?
प्यार बलिदान की मूरत हो तुम मां
केवल जन्म देती नहीं पलकों
पर बिठाती हो तुम मुझे मां
मेरी बातें बिन बोले समझ जाती हो
मेरी भावना,जरूरतों को भी समझ जाती हो
एक सवाल पुछ रही हूं आज
बेटी को मर्यादा का पाठ पढ़ाते सब
बेटों को क्यों भूल जाते हैं सब मां?
बेदर्दी से रौंदकर लूट ली
फिर आबरू एक बेटी की
देखो इज्जत तार तार कर दी
आज फिर एक बेटी की
कब तक बचती मैं भी मां,
आज उसने मुझे भी डस लिया
चिल्लाई, रोई,गिड़गिड़ाई मैं भी
नोच रहे थे जब सब मेरी आबरू,
सिसक रही थी तड़प रही थी
तेरे आंचल में आने को मां
रहम की भीख मांग रही थी
अपनी इज्जत बचाने को मैं
याद बहुत आई तेरे प्यार
भरे आंचल की मुझको
काश छिपा लेती तु मुझे बचा
लेती उन दरिंदों से इज्जत मेरी
बहुत कुछ कहना चाह रही थी
चिल्लाकर आंसू बहा रही थी
जलती बेटियों को बचा लो,
एक फरमान तुम भी सुना दो
एक सवाल का ज़बाब बता दो
कब तक जलती रहेगी बेटी?
कब तक सिसकती रहेगी बेटी?
कब तक खौफ में जीती रहेगी?
बस आखिरी यही अब इच्छा है मेरी
नहीं चाहिए वो सम्मान जो
एक दिन का मोहताज हो
दें सको तो दे दो वो मान
जो बेटी के सर का ताज हो
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
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