स्कूली शिक्षा

School education

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rekha jain
rekha jain 04 Jul, 2022 | 1 min read

स्कूली शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं

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जी हां स्कूली शिक्षा आज भी प्रासंगिक हैं यह कथन पूर्णतः सत्य साबित हुआ कोरोना काल में।दुनिया भर में स्कूलों के करीब सोलह माह से बंद होने के कारण न केवल शैक्षणिक नुकसान हुआ है, बल्कि यह भविष्य में उनकी जीवन भर की आय और आजीविका पर भी असर डालने वाला साबित होगा।

कोरोनाकाल में जो सबसे ज्यादा प्रभावी नुकसान स्कूलों की पढ़ाई को लेकर हुआ है सोलह महीने तक बच्चे और अभिभावक दोनों आराम से सोते और देर से उठते क्योंकि स्कूल जाने की कोई चिंता थी नहीं बेफ्रिक होकर सोलह महीने का सफर तय किया कुछ खट्टी मीठी यादों का पिटारा साथ लिए हुए । यूं तो कोरोना का असर प्रत्येक व्यक्ति पर हुआ पर सबसे ज्यादा नुकसान स्कूली बच्चों पर हुआ है लगभग16 महीने तक स्कूल बंद रहे हैं ऑनलाइनपढ़ाई की कोशिश की गई थी परंतु वह कितनी कामयाब रही, यह सर्वविदित

है।

व्यक्तिगत रूप से स्कूल का वातावरण बच्चों को मानसिक और शारीरिक विकास में मदद करता है और इतने लंबे समय तक स्कूल बंद रहने के कारण, कई बच्चे सामाजिक तौर-तरीके भूलते जा रहे हैं, जो उन्हें अन्य बच्चों और शिक्षकों से स्कूल में जाने पर मिलता है। स्कूल न खुलने की वजह से उनके स्किल में जो निखार चाहिए, वह उन्हें नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनका विकास प्रभावित होगा। इसका सबसे ज्यादा असर उन गरीब और ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले छात्रों पर देखने को मिल रहा है, जिनके घर में शिक्षा का माहौल नहीं है।

खासकर सरकारी स्कूलों में और वह भी दूर- दराज के ग्रामीण अंचलों में और पहाड़ी इलाकों में, जहाँ नेटवर्क समस्या के साथ– साथ

बच्चों के पास स्मार्टफोन का अभाव रहा है।सरकारी स्कूल मेंपढ़ने वाले अधिकतर बच्चे गरीब तबके सेआते हैऔर ऐसे

परिवार में सबके बीच एक फोन होता हैं।अभिभावक काम पर जाते, तो फोन लेकर चले जाते, इससे बच्चे की पढ़ाई नहीं हो

पाती थी। इतना ही नहीं, इस दौरान अनेक परिवारों के रोजगार छिन गए, बहुतों को अपने गाँव लौट जाना पड़ा।ऐसे मेंभला वे

अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा कैसे मुहैया करा पाते। बहुतों की तो आर्थिक कारणों सेपढ़ाई भी छूट गई है।

अब जबकि लगभग सभी स्कूल खुल गए है बच्चे स्कूल तो जाने लगे है पर एक अहम बात, जो इनमें देखने को मिल

रही है कि किताबों को पढ़कर अर्थ समझने में बच्चों को दिक्कतआ रही है इतने लम्बे समय तक स्कूल न जानेकी वजह से

बच्चों में वह तेजी देखने को नहीं मिल रही।ऐसा होना स्वाभाविक भी है ।आमने- सामने बैठकर शिक्षक और विद्यार्थी के बीच

जो रिश्ता बनता है वह मोबाइल के माधयम से नहीं बनाता है।विशषकर छोटे बच्चों के लिए यह और भी बहुत मुश्किल है। कुछ छोटे बच्चे तो स्कूल में जाकर सो जाते हैं उन्हें स्कूल जाने की आदत छूट चुकी है वापस आने में कितना समय लगेगा यह और बात है।

बच्चों की शिक्षा से जड़े इसी नुकसान का आकलन करने के लिए एक अध्ययन

में पाया गया कि कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था, वे उसेभूलने लगे। इसकी वजह

से वर्तमान कक्षाओ में उन्हें सीखने में दिक्कत आ रही है इसका मुख्य कारण यह पाया गया कि ऑनलाइन कलास

ठीक से संचालित नहीं हो पाए, इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाएं सबको नहीं मिल पाई और घर बैठकर पढ़ाई के प्रति

अरुचि ने बच्चों को शिक्षा से पीछे धकेल दिया । इस दौरान पहली से तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई की

ओर तो बिल्कुल भी धयान नहीं दिया गया ।


कोरोना के बीच स्कूल बंद होने से बच्चों ने पिछली कक्षाओं में जो सीखा था, उसे भूलने लगे हैं। इस सर्वे में पाया

गयाकि 54% छात्रों की मौखिक अभिव्यक्ति प्रभावित हुई है छात्रों की पढ़ने की क्षमता प्रभावित हुई है छात्रों

की भाषा लेखन क्षमता प्रभावित हुई हैऔर

यह भी पाया गया कि बच्चों को भाषा और गणित मे सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इस

मामले मे शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भाषा और गणित ही बुनियादी कौशल है

 जो सब विषयों को पढ़ने मे सहायक बनते हैं।


स्कूल में बैठकर शिक्षकों द्वारा दी जा रही शिक्षा का और घर मेंबैठकर मोबाइल से दी गई शिक्षा मेंजमीन आसमान का

अतरं होता है। इसे भी सबने बहुत अच्छे से महससू किया है।घर से हीपढ़ाई के कारण ने बच्चों के मानिसक स्तर को प्रभावित तो

किया ही हैसाथ ही खेल - कूद और दोस्तों से दूरी ने उनके शारीरिक विकास को भी बहुत ज्यादा नुक्सान पहुचाया है ज्यादातर

समय घर पर ही रहने से बच्चे अपना समय टीवी और फोन पर ही बिताते थे। जब आम दिनों में गर्मियों की छुटी के बाद स्कूल

की दिनचर्या मेंआने में बच्चों को वक्त लगता था तो यह तो कोरोना काल की बंदिशों के बाद का बहुत लम्बा समय है,इस समय में

वे न तो बाहर खेलने जा सकते थे, न कहीं घूमने यहाँ तक कि दोस्तों और रिश्तेदारों से भी मिलने पर पाबंदियाँथी । इन सबके

बाद वे जब स्कूल जाएंगे तो उनकी आदतों में बदलाव तो नजर आएगा ही। जिसे पटरी पर लाने में शिक्षकों को भारी

मशक्कत करनी पड़ेगी। 

बच्चों को पढ़ाई लिखाई के प्रति रुचि जागृत करने के लिए सरकारी और गैरसरकारी दोनों ही सतरों पर विशेष कार्यक्रम

और योजनाएँ बनानी होंगी ताकि बच्चे पुनःअपनी पढ़ाई सुचारू रूप सेजारी रख सकें। बच्चों के विकास को लेकर हुए इस

नुकसान पर गंभीरता से विचार करना होगा और बच्चों की आगेकी पढ़ाई सुचारु रूप से चलेऔर हो चकुे नुकसान की भरपाई

हो सके, इसके लिए विशेष प्रयास करनेहोंगे। 

 बच्चों की गुणवत्ता को बिना जाने परखे

आगेकी कक्षाओ में प्रमोट कर देना बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर

ग्रामीण इलाकों के पर पड़ा है, उसमेंभी सबसे जयादा असर बच्चियों पर पड़ा है।ैइस दौर की बहुत सी बच्चयों ऐसीहोंगी

जो अब स्कूल नहीं लौटपाएगी।सरकार को इस दिशा मेंकाम करना अभिभावकों और बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित करना

होगा, अन्यथा इसका असर दूरगामी होगा, जो सामािजक हास का कारण बनेगा।

उम्मीद की जानी चाहिए कि देश की यह भावी पीढ़ी हमारी थोड़ी सी लापरवाही से कहीं लड़खड़ा न जाए। तो आइए कुछ

ऐसा करें कि इस दौर के शिकार सभी बच्चों का मानिसक और शारीररक विकास संचार दुबारा से हो सके।

जब बच्चे स्कूल पहुंचे,तो उन्हें पाठ्यक्रम से न जोड़कर दो-तीनदिन के लिए कुछ रोचक कहािनयाँ पढ़ने के लिए दी जाए।

कारण- अधिकतम छात्रों का सीधे तौर पर पुस्तकों से नाता टूट चका है इसे जोड़ना ज़रुरी है इसके बाद आगामी 15-20 दिनों

तक कुछ नया न पढ़ाकर, पूर्वपठित सामग्री के वे अशं समझाये जाए जिन्हे विद्यार्थी ठीक से नहीं समझ सके है उन अस्पष्ट

अशों को जानने के लिए अनौपचारिक रूप से पूर्व परीक्षा ली जाए। इसी पूर्व परीक्षा केआधार पर कार्ययोजना

बनाई जाए। निश्चित रूप से यह छात्रों क आगामी नए पाठ्यकम से जोड़ने में अहम भूमिका निभायेंगे।

कई छात्र ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आवश्यक गैजेट पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उधर, अब तक ब्लैकबोर्ड, चाक, किताबों के जरिए छात्रों को कॉन्सेप्ट समझाने वाले शिक्षकों के लिए भी डिजिटल क्लासेज नई थीं। लेकिन अच्छी बात यह है कि वे इन नए तरीकों को अपना रहे हैं।


निष्कर्षत कहा जा सकता है कि स्कूल में जाकर जो शिक्षा मिलती है और बच्चों के व्यक्तित्व में जो निखार आता है वो आनलाइन शिक्षा से कदापि नही मिल सकता है।


Dr Rekha Jain

Mob- 7011659388

C 17 third floor front

Ganesh Nagar

Po tilak nagar new Delhi

110018

Near sdmc primary school


मोबाइल से पढ़ाई लिखाई का माहौल कैसे?

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आज की परिचर्चा का विषय बहुत ही चिंतनीय और विचारणीय प्रश्न है समय रहते यदि इसका समाधान ढूंढा नहीं गया तो बच्चों के भविष्य को हम संवार नहीं सकते।

सरकार को इस दिशा मेंकाम करना अभिभावकों और बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित करना

होगा, अन्यथा इसका असर दूरगामी होगा, जो सामािजक हास का कारण बनेगा।

उम्मीद की जानी चाहिए कि देश की यह भावी पीढ़ी हमारी थोड़ी सी लापरवाही से

कहीं लड़खड़ा न जाए। तो आइए कुछ

ऐसा करें कि इस दौर के शिकार सभी बच्चों का मानिसक और शारीररक विकास संचार दुबारा से हो सके।


"आज बना मोबाइल सबके जी का जंजाल

इक पल की जुदाई में भी पूछे कई सवाल।

घर परिवार मे चल रहा मोबाइल का राज।

बच्चे जवान बूढ़े सभी के मन का है ताज।

पढ़ना लिखना मोबाइल से बच्चे खेले खेल

रिश्ते भी इससे निभाये नहीं तो करते मेल।"


 फोन विज्ञान का ऐसा ही अविष्कार हैं जो आज हमारे दैनिक जीवन का अटूट अंग बन गया हैं. शिक्षक हो या छात्र सब्जी विक्रेता हो या चाय वाला, मजदूर हो या चाय वाला, या सफाईकर्मी या व्यवसायी हो या किसान मोबाइल फोन के बिना उसका आकार नहीं चलता।आजकल बच्चे छोटे पन से कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।माना कि मोबाइल मनोरंजन का साधन है पर हर समय उसी में लगे रहना उन पर नकारात्मक प्रभाव देखा जा रहा है।एक जगह घंटो बैठकर गेम खेलना।वहीं पर खाना पीना। नतीजा मोटापा बढ़ना तथा अन्य बीमारी से ग्रस्त होना।


जब-तक मां बाप बच्चों के साथ समय नहीं बितायेंगे , समय समय पर बाहर घुमाने नहीं ले जायेंगे तब तक मोबाइल का साथ नहीं छोड़ेंगे । आज हालात यहां तक बढ़ गये है बच्चे बाहर नहीं जाना चाहते और मां -पापा से बोलते हैं आप जाओ हम मोबाइल में गेम खेलेंगे। इस स्थिति को मोबाइल की लत कहते हैं। मोबाइल फोन का आविष्कार हमें सशक्त बनाने के लिए किया गया था, लेकिन अब यह हम पर हावी होने लगा है।



मोबाइल फोन की आदत से छुटकारा पाना मुश्किल हो सकता है लेकिन असंभव नहीं।

हम सोशल मीडिया, टेक्सटिंग, गेमिंग या वीडियो देखने जैसी मोबाइल गतिविधियों के लिए एक समय निर्धारित कर सकते हैं ताकि अपने अन्य कार्य समय पर कर पाए। हम पेंटिंग, नृत्य, इनडोर या आउटडोर गेम खेलने जैसी अन्य मनोरंजक गतिविधियों में भी संलग्न हो सकते हैं।

अगर हम उचित प्रयास करे तो धीरे- धीरे इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। अगर हम इसका सहीं प्रकार से उपयोग करते है तो यह जी का जंजाल नहीं बनेगा।


 भावी पीढ़ी हमारी थोड़ी सी लापरवाही से कहीं लड़खड़ा न जाए। तो आइए कुछ

ऐसा करें कि इस दौर के शिकार सभी बच्चों का मानिसक और शारीररक विकास संचार दुबारा से हो सके।


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