हमसफ़र ग़ज़ल

Humsafar

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rekha jain
rekha jain 10 Jul, 2022 | 1 min read



नमन मंच ।

काफिया .अर ।

रदीफ . था

विधा .गजल


    हमसफ़र

    *****

गांव का लम्बा सफर था।

पग-पग पर कहर था


हादसों से जीत पाए।

तेरे साथ का असर था।


पांव में जब पड़े छाले

तू ही मेरा हमसफ़र था।


ठिठक गये जब पांव तेरे

तू पसीने से तर-बतर था।


रात को पड़ा जहां रुकना।

वो बहुत ही गंदा शहर था।


रात के सन्नाटे में जो देखा।

मौत का भयानक मंजर था।


परेशान रहते थे हम सफर में।न

फिजा में घुला मीठा जहर था

डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद

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