"तर्क और संवेदना की कसौटी पर नारी विमर्श+++++++++++++++++++++
कल भी नारी पर ही उंगली उठती थी और आज भी ।कटघरे में नारी ही खड़ी रहती है। चुनौतियां खत्म नहीं हो रही बल्कि बदलते परिदृश्य में नए नए रूपों में सामने खड़ी हो रही हैं।
ये भी कटु सत्य है कि वक्त चाहे कितना भी बदल जाए लेकिन औरत को अपने हक के लिए पहले खुद को साबित ही करना पड़ा है।
आज भी वक्त जरूर बदला है, नारी की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हुई है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नारी की क्षमता पर आज भी सवाल खड़े किए जाते हैं। जिसका एक ताज़ा उदाहरण है अभी हाल में 17 वर्षों से चल रही लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महिलाओं को सेना में बराबरी का हक मिला है। इस कानूनी लड़ाई में विपक्ष की ओर से दलील में महिलाओं की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं पर सवाल उठाए गए थे। जिसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि सरकार अपनी मानसिकता बदले। हम महिलाओं पर एहसान नहीं कर रहे, उन्हें उनका हक दे रहे हैं। अजीब बात है न ! नारी की क्षमता पर ही सवाल क्यों? सुप्रीम कोर्ट द्वारा मिली इस जीत ने ये तो जरूर साबित कर दिया कि महिलाओं को कमजोर समझने वाली मानसिकता में अब बदलाव लाने की जरूरत है।आज नारियां पुरुषों से किन्हीं भी मायनों में कम और घर की चहारदीवारी में कैद नहीं हैं। वे उच्च शिक्षित हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक व अंतरिक्ष यात्री हैं तथा हर तरह के उच्चतम पदों पर भी आसीन हैं। वे अपने वस्त्रों व जीवनशैली के साथ अपने जीवनसाथी का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं।
समाज की कुछ उच्च शिक्षित नारियां और उनके संगठन शायद यह समझते हैं कि मनचाहे कम वस्त्र पहनना, रोक-टोकरहित मुक्त जीवन जीना, मुक्त सेक्स की राह पर चलना ही वांछित बदलाव है। इस बदलाव का उनके पास कोई तर्कयुक्त जवाब उनके पास नहीं है सिवाय इसके कि सदियों से चले आ रहे रहन-सहन व आचार-व्यवहार के हर नियम को उन्हें बस चुनौती देना है।
इस बात में कोई संशय नहीं है कि नारी अपने जीवन में घर के सीमित दायरे के लिए नहीं बनी है। फिर भी नारी को यह भूलना नहीं चाहिए कि घर ही उनका किला और सबसे बड़ा कार्यक्षेत्र है जिसकी कि वे अकेली ऑर्किटेक्ट हैं। नारी के द्वारा घर को घर जैसा बनाने रखने में किया प्रयास महान होता है जिसमें वह अपने बच्चों का पालन-पोषण कर उनका और देश का भविष्य संवारती है।
घर की हर जिम्मेदारी को निभाकर वह अपने पति की धुरी और खुशहाल घर की नींव बनकर दिखाती है। ऐसे खुशहाल घरों से ही देश ताकतवर बनता है। हां, यह जरूरी नहीं कि घर संभालने में नारी अपने आपको इतना झोंक दे कि उसे अपने स्वास्थ्य, पोषण की चिंता ही ना रहे ऐसा भी नहीं करना चाहिए।नारी मां बनकर अपनी जिम्मेदारियां संभालती हैं तो पत्नी बनकर अपना धर्म भी निभाती हैं। बेटी बनकर घर की शोभा बढ़ाती हैं तो बहन बनकर साथ भी निभाती हैं और जब जरूरत पड़ती है तो यही नारी शस्त्र भी उठाती हैं।अपनी निष्ठा पूर्वक काम करने के तरीके से, अपनी मेहनत से खुद की अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। आईएमएफ जैसी संस्था की चीफ भी बनकर नारी ने दिखाया दिया है कि कोई भी क्षेत्र या कार्य उनसे अछूता नहीं है। बैंक, रेलवे, टीचिंग जैसे क्षेत्रों में सेवा देकर अपनी पहचान बना चुकी हैं वहीं अब खेल के क्षेत्र में भी अपना दमखम दिखाया है
ईश्वर ने स्त्री को गुणों का खजाना दिया है उपहार स्वरूप, जिससे वह इस सृष्टि में अपनी भूमिका को खूबसूरती के साथ निभा सके। लेकिन छोटी-छोटी जिम्मेदारियों में उलझी स्त्री अपनी सबसे अहम जिम्मेदारी को शायद समझ ही नहीं पाई है...। घर, परिवार, समाज और संसार की जिम्मेदारियों के बीच, उसे याद ही नहीं कि ईश्वर ने उसे पूरी सृष्टि की जिम्मेदारी दी है, केवल समाज की नहीं...। सृष्टि के साथ सामंजस्य हो गया, तो संसार खुद ब खुद चल जाएगा...। कई सकारात्मक परिवर्तन खुद ब खुद हो जाएंगे...। इस बीज मंत्र को उसे समझने की आवश्यकता है...।
निष्कर्षत नारी ने साबित कर दिया है कि जीवन की दौड़ में पुरुष चाहे कितनी भी कसौटियों पर नारी को कसे लेकिन नारी हर कसौटी पर आज खरीद उतर रही है वह पुरुषों के समकक्ष ही नहीं, बल्कि उनसे बेहतर है। वही जीवन की असली कलाकार है और पुरुष उसके हाथों का मात्र रंग और कागज है। यह दुनिया पल-पल बदलती रहती है और नारियों को भी स्वयं को मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार लगातार बदलते रहना होगा। यह तय है कि नारी कोई वस्तु या दया की पात्र नहीं है। सभी को पता है कि मां के रूप में एक कमजोर दिखने वाली नारी को भी जब लगता है कि उसके बच्चों पर कोई खतरा है तो उनकी रक्षा करने के लिए वह रणचंडी का रूप धारण करने में कोई देर नहीं लगाती है। आज नारी तर्क और संवेदना की कसौटी पर भी खरी उतर रही है।
कर्तव्य से ना हम सारी है
कसौटी झेलने में न्यारी है।
घर-परिवार की प्यारी है।
पूरे परिवार की क्यारी है।
हां जी हां हम तो नारी है.
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक रचना
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