अर्थप्रबल

Money is important

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rekha jain
rekha jain 04 Jul, 2022 | 1 min read

  अर्थ प्रबल बाकी निर्बल

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आज मनुष्य के लिए अर्थ इतना सबल हो गया है उसके आगे कुछ नहीं।अर्थ की सबलता न केवल बालक ,जवान,वृद्ध,पुरुषों में, स्त्रियों से, साधुओं में, डाकुओं में, शैतानों में, नेताओं में,राजा, प्रजा ,शिक्षक, भिक्षुक सभी में अर्थ की प्रबलता देखी जा सकती है।

छोटे से बच्चे में भी अर्थ की प्रबल इच्छा मानो पेट से लेकर आता है रूपए को हाथ में पकड़ छोड़ता नहीं। जवानी में तो बिना पैसे के जवानी का कोई मज़ा नहीं रह पाता है इसकी पूर्ति में आज की युवा पीढ़ी जिस गर्त में गिरती जा रही है उसका ज्वलंत उदाहरण है आज लड़कियां इंटरनेट के माध्यम से

फैन्स बना लेती है बिना सोचे समझे उनके लालच में बहती चली जाती है और जब हकीकत सामने आती है तो आसमान से नीचे गिरती है और उनके पास पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता।

नेताजी जी भी अर्थ पाने की चाह में कितने नीचे गिर थे है यह सब आप सबके समक्ष होता रहता है।

आज साधु संत भी बिना अर्थ के किसी को मंत्र तंत्र यंत्र नहीं देते। आज साधुओं के विशाल आवास है बैंक बैलेंस भरे पड़े हैं।

आज भिक्षुक भी करोड़ पति बने हुए हैं अभी हाल में एक न्यूज में देखा था एक महिला ने भीख के पैसों से करोड़ों रुपए मिला।

आज अर्थ इतना ज्यादा प्रबल हो गया उसके आगे" न बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया", वाली कहावत पूर्णतः चरितार्थ होती है।

जबकि सभी इस बात को जानते हैं कि कफ़न में जेब नहीं होती।खाली हाथ आए हैं खाली हाथ जायेंगे।फिर भी इंसान अर्थ की प्रबलता के नीचे दब रहा।मूर्ख इंसान में नहीं जानता कि जब मौत आती है तो न अर्थ काम आता है और न डाक्टर न कोइ दुआ।

अब तो जाग मानव।;-


अब तो जागो मानव अंधे।

छोड़ दो सब गोरख धंधे।

पड़े हो क्यों अर्थ के पीछे-

नही मिलेंगे चार भी कंधे।


डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद

स्वरचित व मौलिक रचना


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