घूंघट

Parda pratha

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 381
rekha jain
rekha jain 08 Jul, 2022 | 1 min read


घूंघट प्रथा सदियों से चली आ रही है ।पर मेरे ससुराल में मुझे कभी किसी ने भी पर्दा करने के लिए कभी भी बाध्य नहीं किया है। लाज शर्म तो स्त्रियों का गहना है जिस प्रकार गहने हमारे श्रृंगार मैं चार चांद लगा देते है वैसे ही लाज शर्म स्त्री के व्यक्तित्व को बढ़ावा देते है मेरा मानना है कि घूंघट करके केवल इज़्ज़त नही दी जाती। इज्जत तो हमारे दिल में ,मन से होनी चाहिए । मेरे विचार से यह प्रथा सही नहीं है।आपलोगों ने शायद देखा होगा कुछ स्त्रियां घूंघट तो कर लेती है लेकिन घूंघट की आड़ मे जमकर लड़ भी लेती है।इसका क्या अर्थ निकालें।कभी सोचा आप सबने। एक लड़की जब बहूं बनकर ससुराल आती है तो एक तरफ तो बहूं भी बेटी है का संदेश फैलाया जाता है दूसरी तरफ घूंघट की चाह ससुराल वाले चाहते हैं जो आज के युग मे संभव नहीं है। आज स्त्री घर की चौखट लांघकर कंधे से कंधा मिलाकर बराबर पुरूष का साथ दे रही है। फिर स्त्री से घूंघट की चाह बहूं से ही क्यों ? आज स्त्री से अगर जबरदस्ती घूंघट करवायेंगे तो उसे वो इस तरह लेगी एक मुक्तक के माध्यम से बता रही हूं। मैंने चार लाइन लिखी उसको आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं:-


घूंघट की ओट पर

छत की कोट पर

लड़ना है सबसे

डंके की चोट पर।


यह था घूंघट प्रथा का स्वरूप। घूंघट करके अपनी मनमानी करती थी स्त्रियां। फिर उस घूंघट से क्या मतलब। मेरे विचार से तो यह प्रथा निराधार दकियानूसी प्रथा है जो वर्तमान काल मे सटीक नहीं है।


डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद




0 likes

Support rekha jain

Please login to support the author.

Published By

rekha jain

rekhajain

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.