संस्कार
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जिसने संस्कारों का छोड़ा घर बाहर
संस्कार की तोड़ी हर दीवार
समझा रहा परिवार बार बार
मानने के नहीं हैं तैयार
ऐसे मे क्या करें परिवार?
आज हो रहे संस्कार तार-तार।
संस्कारों का उल्लंघन हो रहा बार बार
आधे-अधूरे कपड़ों में समझे शानदार।
संस्कारित नारी ही होती जानदार।
मर्यादा का गहना पहन बनती मालदार।
जब-जब मर्यादा तोड़ी रिश्तों में आयी दरार।
जिसने संस्कारों को थामा वहीं सफल परिवार।
नहीं तो उजड़ी बगियां फुलवार
ऐसा जीना है बेकार
जहां बुजुर्गों को पड़ रही मार
बेबस हो युवा पीढ़ी से माने हार
वृद्धाश्रम की मानें सफल घर परिवार
वहीं पर बताएं मन का सार
मन मे रखते बात हजार
सांझा भी करते दो चार
ना जाने कैसी चली है बयार
हर घर के बुजुर्गो की कहानी शर्मसार।
आज युवा पीढ़ी संस्कारों को ना ढोती भार
उन्हें चाहिए मैऔर मेरी पत्नी का अधिकार
सेवा करने के बदले देते दुत्कार
नौकर से भी बद्तर रखते कष्ट देते हजार
ऐसे जीने से मरना हमें स्वीकार।
डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद
स्वरचित व मौलिक अप्रकाशित रचना
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