सास बहू

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rekha jain
rekha jain 17 Jul, 2022 | 1 min read

सास-बहू

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कविता


पहले जो थी

सास -बहू की तकरार

तोड़ती थी घर परिवार

मानने को कोई ना थी तैयार

दुखी करती थी सांस बहूं की मार

टूटती थी हर दीवार 

कैसे हो अब नैया पार

ज्यों -ज्यों वक्त आगे बढ़ा

बहू हो गई है होशियार 

मां जी कहकर खुश रखती घर संसार 

सास बहू में बढ़ा प्यार।

बहू में ही ढूंढ रही बेटीआज

सास जाने अपनी भलाई का राज

रस्मों का कोई बन्धन नहीं

संस्कारों का कोई क्रंदन नही

अब कोई रूदन नहीं 

बहू की कमाई पर ही करे नाज़।

सास को मां कहती अपने मतलब काज

सास से ही मांगती पानी आज

क्योंकि मां जी आप इस घर की सरताज

आपही इस घर की सुर संगीत साज

मां जी आप पर छोड़ा समाज

जैसे चाहो करो घर पर राज

किंतु मेरी छोटी सी इच्छा पूरी करो

मुझे ऐसे ही बेटी की दर्जा देना

ताकि मै भी निभाऊं 

बेटी का पूरा फ़र्ज

नहीं हुं मैं खुदगर्ज 

बेटी बनकर उतारू सारा कर्ज

करती रहूं इक अर्ज

मुझको आप क्षमा करना

तुम सदा ही संभाले रहना

मैं ना छिपाऊंगी कोई राज

आप है मेरे घर की ताज।


डॉ रेखा जैन

शिकोहाबाद

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