अधूरे ख्वाब

Dreems

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rekha jain
rekha jain 14 Jul, 2022 | 1 min read


       "गीतिका"


ख्वाब प्यारे दिखाते लोग

नाटक नित्य रचाते लोग।(1)


क्यों ऐसा करते हैं दोस्त

फिर पीछे पछताते लोग।(2)


राजनीति है अब व्यापार

धन भी खूब कमाते लोग।(3)


मानवता होती अब शून्य

अपना पतन कराते लोग।(4)


नैतिकता को भूले आज

तिल का ताड़ बनाते लोग।(5)


 रिश्तों की डोर न कमजोर 

रिश्तें सभी भुनाते लोग।(6)


 हाथ वक्त के हो मजबूर

सब पे माथ झुकाते लोग।(7)


मरना जीना जग की रीत

जाते हुए रूलाते लोग।(8)


जब भी लगे करारी चोट

अपनों को अपनाते लोग।(9)


लोभ मोह का कर भंडार

धन पे दृष्टि गड़ाते लोग।(10


कितनी भी ले दौलत जोड़

सभी"रेखा"छोड़ जाते लोग।(11)


डॉ रेखा जैन शिकोहाबाद

स्वरचित व मौलिक रचना





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