Preeti Gupta

preetigupta3

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माँ
एक माँ बूढ़ी हो कर भी हर दिन नये ख़्वाब गढ़ती है कभी बच्चे के लिए तो कभी पति के लिये पर कभी बाबा की नज़रों ने उसको कलाकार नहीं जाना!!! जबकि खाना बनाने की कला को माँ ने बखूभी पहचाना !! माँ की गढ़ी हर कृति को मज़ाक में ही उड़ा डाला थक हार के भी माँ ने उस थके हारे बदन को अपना सर्वस्व दे डाला!!! उसकी इस कला को कभी लफ़्ज़ों का भी सहारा ना मिला!! कलाकार भी है वो अदाकारा भी है वो पर उस मन को समझ के भी कभी व्यक्त ना कर पाये बाबा और माँ कभी गढ़ ही नहीं पायी ऐसी कोई तस्वीर जो उतर जाती बाबा के दिल में या उतरी भी तो उसे खुल के माँ को बता ही ना पाते खूबी तो ढूँढ ना पाते और कमियाँ बेहिसाब गिनवाते!! ये रास्ता माँ के दिल तक तो कभी पहूंच ना पाया हाँ दोनों ढूंढ ही नहीं पाये रास्ते जो बने ही नहीं थे शायद एक दूजे के वास्ते!!!! @ Kuch man ki

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by preetigupta3

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10 Jun, 2023