रिया- दीदी क्या कर रही हूँ ?
मोना -कुछ नहीं बस फिल्म देख रही हूँ?
रिया-क्या दीदी आप अब भी फिल्म देख रहीं हो?,बहिष्कार करो इन फ़िल्मी दुनिया का।आपको तो पता है ना,कितनी भ्रष्ट हो चुकी है ये फ़िल्मी इंडस्ट्रीज।
कितना दिखाया जा रहा है टीवी में इनके बारे में ।
मोना-अरे!ये क्या कहे रही हो तुम ?,भूल गई हम दोनों बचपन में कितने क्रेज़ी हुआ रहते थे।फ़िल्मी दुनिया की बातें करते ,उनके बारे पढ़ते थे।और उनकी फ़िल्मों के पात्रों में खुद को देखते थे।
और मुझें तो फ़िल्मी संगीत का इतना शौक था कि हर वक़्त मेरा रेडियो खुला ही रहता था।और उनका संगीत मुझे जीवन में हो रहे उतार-चढ़ाव को झेलने के लिये संदेश देते है।
ये गाना कितना खूबसूरत है जो जीवन के सार को बताता है।
"जिन्दगी कैसी है पहली हाय कभी तो रुलाये, कभी तो हंसाये। "
रिया-कहे तो आप सही रहो हो दीदी।
मोना-देख मैंने फ़िल्मी दुनिया के बारे में एक आर्टिकल लिख रही हूँ।
रिया-अरे वाह दीदी!शीर्षक क्या है?
मोना-आज की युवा पीढ़ी को फ़िल्मों के नायकों व नायिकाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए की नहीं ।
मोना-देखा जाये तो मुझे पहले की फ़िल्में ज्यादा अच्छी लगती है।जो समाज को एक संदेश भी देती थी। और मनोरंजन करती थी।
विमल राॅय, सत्यजीत रे जिन्होंने समाजिक मुद्दों पर फ़िल्म बनाकर जनता को जागरूक किया।मनोज कुमार ने देशभक्ति फ़िल्म बनाकर सब को देश के प्रति देश भावना से ओत-प्रोत किया।और युवा पीढ़ी को देश प्रेमी बनाया।शहीद भगत सिंह, आँखे, कर्मा,उपकार न जाने कितनी फ़िल्में थी।
70-80 और 90 दशक में बनी फ़िल्मे जिनके नायक और नायिका को प्रेरणा मान कर उनके जैसा बनने का लोग प्रयास करते थे।
जिनमे मनोरंजन के साथ-साथ संदेश भी होता था ।
रिया-दीदी आज जो भी फ़िल्मी जगत में घट रहा है ,उसको देखकर ऐसा लगता है कि आज की नायक व नायिका को कोई प्रेरणा नहीं मानता होगा। मगर हाँ !उनके जैसा ट्रेड जरूर फाॅलो करते है।
मोना-मुझे ऐसा लगता है,कि आज के समय ऐसी फ़िल्में बनने की वजह कही न कही हम भी है।हम सोचते है कि हम पैसा खर्च करके थियेटर में समाजिक व संदेश देती फिल्म देखने नहीं मनोरंजन के लिए जाते है ।और वो ऐसी शीर्षकों पर बनी फिल्मों को नकार देते है।जिससे फिल्म निर्माता व फिल्म से जुड़े सभी को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।तो हमें पहले अपनी सोच बदलनी पड़ेगी ।जहाँ पर हम वाई चोट इंडिया और हिचकी जैसी फिल्मों को नकार देते है और हाउसफुल जैसी फिल्मों को हिट करा देते है।
तो हमें आनंद जैसी फिल्म के नायक से प्रेरणा लेनी चाहिए, कि ज़िदंगी बहुत खूबसूरत है इसका हर परिस्थिति में आनंद लेना चाहिए ।
वही मर्दानी फिल्म की नायिका से प्रेरणा लेकर हर ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए ।
अगर आज का युवा पीढ़ी संयम से अपनी मनःस्थिति को सही दिशा में बढाता है ।तो वह राष्ट्र का और खुद सही से विकास कर सकता है।
रिया-सही कहा दीदी।वैसे भी "एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है।"तो हम सबको गलत नहींं कह सकते हैं ।
और अंत में आप सभी से निवेदन है कि समाजिक मुद्दों पर बनी फ़िल्में भी जरूर देखे और उन मुद्दों का पुरज़ोर विरोध कर उसको जड़ से खत्म करने का भरसक प्रयास करे।जिससे निर्देशक व निर्माता और उस फिल्म से जुड़े सभी का लोगों का किया काम सफल हो।
प्रीती गुप्ता
स्वरचित व अप्रकाशित
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