बुढ़ी आँखो से झांकता मीडिया का पक्ष व निष्पक्ष

जैसे जैसे समय बदल रहा है।वैसे वैसे हर किसी नजरिया बदल रहा है।हर जगह आपको बदला स्वरूप दिखेगा ।बात करे तो मीडिया की तो उसका जितना विस्तार हुआ है।उतना ही उसका स्वरूप बदल रहा है।उसका पक्ष व निष्पक्ष स्वरूप उजागर हो रहा है

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Preeti Gupta
Preeti Gupta 17 Sep, 2020 | 1 min read

"काहे को कान उमेढ़ रहे हो टीवी के"-मिसेज़ शर्मा जी अपने घुटने पर हाथ रख के उठते हुये बोली ।

"अब जा मैं जेइ खबर दिन रात चलेगी,हर न्यूज़ चैनल पर बस जेइ-जेइ दिखाये जा रहू है।एक हम रहऊ ज़माना था ,विविध भारती पर दिन-भर सुनते हुए, सब काम भी हो जावत था और दुनियाँ भर की खबरें के साथ मनोरंजन भी सुन लेत थे"-मिसेज़ शर्मा ये कहती हुई किचिन में चली गई ।

मिस्टर शर्मा जी ये सब सुनकर सोच में पड़ गयें ।

बोले- कह तो तुम सही रही हो,पहले अपनी बात कहने के लिए समाचार पत्र व पत्रिकाओं की शुरुआत हुई थी।जिसे सभी लोग बड़े चाव से पड़ा करते थे।फिर आया दूरदर्शन तब भी अच्छा था।

मगर जब मीडिया का निजीकरण हुआ, तब काफ़ी कुछ बदल गया है ,इसमें ।

"तुम जानत हो सबसे पहलें पत्रकारिता किसने शुरू की थी"-मिसेज शर्मा जी ने पूछा। 

जानबूझकर हंसते हुये बोले- "नाहीं जानत ,तो को पता है तो बता देयो।"

"तुम तो दिन भर रिमोडवा के कान मरोड़त रहत हो ,जे भी खबर नाहीं देयी तुम्हीं टीवी ने।तो सुनो नारदजी! जो इधर की बात उधर और उधर की बात इधर करते थे। ये कहे कर मुस्कुरा दी "

"अच्छा मुझे तो पता नहीं था" ,मेरी गाँव की गवारिन।

"चलो वही अब चाय पिला दो शाम हो रही है,"-मिस्टर शर्मा जी कहते हुये बालकनी में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयें ।

ओर सुबह का अख़बार उठा कर पड़ने लगे।मगर उनका  ध्यान मिसेज़ शर्मा जी की बातों पर था।

मीडिया का स्वरूप पहलें से कितना बदल गया है।पहले हम सब दूरदर्शन को पूरा परिवार मिलकर देखते थे ।अगर किसी प्रतिष्ठित महान व्यक्ति की मौत होती थी।तो पूरा दिन दूरदर्शन पर शोक धुन का प्रसारण होता था।और विविध भारती पर इसकी जानकारी दी जाती थी।तब इतवार इतवार लगता था।पुरा घर इस दिन का बेसब्री से इन्तजार करता था।बच्चों की फ़िल्म ,धार्मिक धारावाहिक फिर देश-विदेश की खबरें  और रात में फ़िल्म आती थी।

बच्चे भी बड़े मन से अपने मनोरंजन के लिये चंपक ,नंनद और प्रेरणादायिक पुस्तकें पढा करते थे ,जो उनका मानसिक विकास करती और भावी जीवन को सही दिशा देती ।कितना अच्छा समय था ।

अब भी दूरदर्शन ने अपनी भूमिका नहीं बदली है।कोरोना जैसे संकट के समय में जब नागरिकों को घर में रहना जरूरी था ।तब अपने पुराने सीरियल का पुनः प्रसारण कर हम सबका मनोरंजन किया।

वैसे देखा जाये तो आज का मीडिया काफी ज्यादा विस्तृत हुआ पहले से।

जब से निजी चैनल्स का बोल बाला हुआ ।तब से हर वर्ग के लिये चैनलों का निर्माण भी हुआ, बच्चों के लिये कार्टून,धार्मिक, व्यापार सम्बन्धित ,न्यूज़ ,खेलों और फिल्मों और हर भाषा के चैनलों का भी प्रसारण हो रहा है।

सब प्रांत के लोग अपनी भाषा में देखते है।

कहते है न कि," अच्छाई है तो बुराई भी "

बस आजकल की मीडिया का व्यवहार बदल रहा है।जो किसी के भी हित में नहीं है ।न मीडिया  के लिये न ही जनहित  के लिये।

किसी मुद्दे पर चार-पाँच माननीय सदस्यों को इकट्ठा कर चर्चा करते है और वह चर्चा बहस में और आपत्ति कटाक्ष में तब्दील हो जाती है।

अपने चैनल की टीआरपी बढ़ाने की होड़ सी लगी रहती है ।एक न्यूज को सच्चाई से परे तोड़ मोड़ कर मिर्च मसाला लगा कर पेश करती है,ये अच्छा  नहीं ।

देश के हित में जो ज़रूरी विषय है उन से सरकार को अवगत कराना।जिससे सरकार ओर अच्छा प्रयास करें सबके हित में ।राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक होनी चाहिये ।अच्छा प्रसार के लिए ये मीडिया को पुरुस्कृत ।जिससे वह अपनी ख़बरों को सच्चाई के साद पेश कर सकें ।

सरकार को अब मीडिया पर भी कानून बनाना चाहिए ।और कुछ नियम लागू करने चाहिए ।

आजकल तो सबके हाथों में एक नया प्रसार भारती साथ चलता है।जिसमें आप अपनी बात तो कहते है।मगर कभी-कभी ये इतना हानिकारक रूप ले लेता है कि आपकी निज़ता सबके सामने प्रस्तुत कर देता है।और फेक खबर को सच्ची बता कर उसका विस्तार कर देता है।

बस इन विचारों में शर्मा जी बस आँखे बंद कर खोये हुये थे ।कि तभी मिसेज़ शर्मा जी ने आवाज़ दी ।

"अंदर आईये, चाय बन गई है और आपका रामायण भी शुरू हो गया है"

और उनकी आँख खुल गई ।

"आता हूँ भाग्यवान" कहते हुये घर के अंदर आ गये।

मेरा ये लेख पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दे ।जिससे मुझे से लिखते वक़्त कोई त्रुटि हो गई हो ।तो अवगत करायें।

प्रीती गुप्ता

स्वरचित

धन्यवाद ✍🙏

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Preeti Gupta

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