आज राकेश जी अपनी बेटी के लिए साईकिल खरीद कर घर जा रहे थे,तभी उनका जबर्दस्त एक्सीडेंट हो जाता है।
आस-पास के लोग उन्हे अस्पताल पहुँचा देते है।और उनके फोन से उनके घर पर खबर देते है।
घर पर राकेश जी की पत्नी रात के खाने की तैयारी में लगी होती है।तभी उनके मोबाइल की घंटी बजती है।
वह फोन उठाती है"हैलो कौन बोल रहा है?"-वह पूछती है।
उधर से जब राकेश जी के एक्सीडेंट की खबर सुनती है ।तो अचानक उनके हाथ से फोन छुट जाता है ।वह घबरा जाती है।फोन को उठाकर कपकपाती आवाज़ में बात करती है।
ट्रीटमेंट के बाद जब राकेश जी को होश आता है ।तो उन्हे पता चलता है, कि पैर का ,कालर बोन का और जबड़े की काफी क्षति हो गई है।
वह काफी मायूस हो जाते है।मगर पत्नी की सांत्वना से वह खुद को सम्हालते है।
पत्नी के प्रयास से छः महीने में काफी सुधार हुआ, मगर सीधे पैर के टकना की कटोरी काफी टूटने की वजह से वो चलने में असमर्थ हो रहे थे।
डाक्टर ने उन्हें एक्सरसाइज़ बताई, मगर दर्द इतना होता था कि वो एक्सरसाइज़ नहीं करते थे।
एक दिन उनकी पत्नी ने अपनी दस साल की बेटी से कहा ,"पूनम तुम चाहती हो, न की पापा तुम्हें साईकिल सिखाये " हाँ माँ ।
"तो तुम्हें रोज अपने पापा को एक्सरसाइज़ करानी होगी ,चाहे वो कितना गुस्सा करें ।"
अगले दिन से बेटी अपने पापा को एक्सरसाइज़ करानी शुरू करती है,मगर असहनीय पीड़ा की वजह से वो एक्सरसाइज़ करने से मना करते है ।बेटी पापा का पैर पकड़ कर पत्थर सी मजबूत बैठ जाती है।
रोते हुये कहती है,"पापा क्या आप मुझे साईकिल चलाना नहीं सिखाओगें।" डबडबी आँखो से पापा को देखती है।
पापा अपनी बेटी के पत्थर से मजबूत इरादों को देखकर एक्सरसाइज़ करने लगते है।
और बेटी के तीन महीने के अथक प्रयास से वो अपने पैरों पर खड़े हो जाते है।
मेरी कहानी पत्थर से मजबूत इरादों को बयाँ करती है।कि परिवार का साथ और सहयोग से हर कठिन परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है।
प्रीती गुप्ता
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