अगर बराबर ही हैं बेटा बेटी तो क्यों सुरक्षित नही वो रात के आठ बजे रोड पर ।
जकड़ी हैं बेचारी कैद मे लोंगो की सोच पर , छोटे कपडों मे वो बेशर्म हैं । तो फिर छोटी सोच मे अच्छाई कैसे लोगों के बोल पर ।
जब चुनरी फैली हो आंचल पर तो संस्कारी हैं वो पर जब चुनरी न हो आंचल पर तो बेहयां हैं व़ो जानी जाती ।
ये कैसी समाज हैं जहाँ बेटी अपने कपड़ो से है पहचानी जाती ।
अंग्रेजी मे बात करें तो घंमडी वो कहलाती और न बोले अंग्रेजी तो अनपढ हैं मानी जातीं ।
ये कैसी समाज हैं जहाँ बेटी हर इंसान के नजरिए से देखी जातीं ।
हाथ मे मोबाइल हैं तो कही चक्कर हैं उसका , हाथ खाली हैं तो जाहिल हैं जीवन उसका ।
बात करे सबसे तो चालाक हैं वो न रखे मतलब तो मतलबी हैं वो
जीए खुद के बल पर तो गंदगी हैं वो और रहे दबे तुम्हारे पैरों तले तो तुम्हारे पैरों की जूती हैं वो ।
सोच बदलों और बढ़ो आगे मान करों बेटी का और बनो हौसला उनका । अपने बल पर जीने वाली ये बेटियां ही तो निराली है ।रखों भरोसा इन पर ये तुम्हारी दुनिया चहकाने वालीं हैं ।
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