उस आदमी के घर पहुंचकर उसके द्वार पर दस्तक देता है , तभी कोई आकर दरवाजा खोलता है ,राज जब अपनी नजर उठाकर जब उसनें देखा तो वो बस देखता रह गया ।सामने एक खूबसूरत सी लड़की जिसकी उम्र करीबन 21,22 होगीं , सामने खड़ी थीं ।
"जी ,आपको अंदर नहीं आना?" लड़की तेज स्वर मे पूछती है
"जी ,आना हैं"।
बेटा ,शीला , इन्हें शयनकक्ष मे ठहरने को कहों और इनके सोने की व्यवस्था करो"। लड़की के पिताजी ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा ।
"जी पिताजी! कहकर वो लड़की दालान की ओर बढ़ जाती हैं ।
" जी ये आपकी बेटी है"।
"हम्म मेरी एकलौती पुत्री है "।
"पिताजी खाना लग गया है"जब ही आंदर से आवाज आती हैं ।
"चलो बेटा, भोजन करलें ,सुबह तुम्हें प्रस्तान भी करना है "।
"ठीक हैं "।
दोनों जाकर आराम से भोजन करके हैं और शीला उन्हें बड़े प्यार से भोजन परोसती हैं ।
राज उंगलियों को चाट चाटकर ,भोजन खाता हैं ,उसनें इतना टेस्टी खाना कभी नहीं खाया था ।
"बेटा, तुम भी भोजन कर लेना "। अपने पेट पर हाथ फेरते हुए पिताजी अपनी बेटी से कहते हैं ।
"खाना बहुत टेस्टी हैं "। राज पानी पीते हुए बोला ।
"शुक्रिया "। लड़की ने भी मुस्कराकर जबाब दे दिया ।
"राज शयनकक्ष मे सोने चला जाता है"।
रात के 11 बजे उसे एहसास होता है कि किसी ने धीरे दरवाजा खोला है ,कहीं झिल्ली डायन तो नहीं आ गी मेरा पीछा करते करते । राज डर के मारे कम्बल को मुंह पर धक लेता हैं ।
"सुनिए" राज को आवाज सुनाई देती हैं।
अरे! ये आवाज तो सुनी सुनी लग रही हैं, सोचते हुए राज कम्बल को मुंह से हटाकर सामने देखता है ।
"आप शीला जी ,माफ कीजिएगा नींद लग गई थीं ।
"जी कोई बात नहीं ,मैं आपको पानी का जग देने आई थीं "। कहकर शीला वापिस कमरे से बाहर की ओर मुड़ जाती हैं।
अगली सुबह राज नहा -धोकर सबसे विदा लेता है और अपनी मंजिल की ओर निकल जाता हैं।
करीब दो घंटा खड़ा होने के बाद उसे शामपट के लिए दो बजे वाली बस मिलती हैं।
"करीब पांच बजे खंडोलनगर पहुंचने के बाद "।
"अरे पांच बज गए उस बूढ़ी औरत ने सूर्य अस्त होने से पहले चढ़ाई करने कहां था ,अब तो सूर्य अस्त होने ही वाला है "। राज सोचते हुए बड़बड़ाता हैं।
"क्या हुआ साहब ?" किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हांथ रखते हुए कहा ।
राज चौंक जाता ,इस नई नई सी जगह पर कौन उसे जानता है ,या कहीं ये भूतों की चाल तो नहीं ,वैसे भी इस शहर मे इंसानो से ज्यादा भूतों का बास हैं ,सोचकर राज पीछे की ओर मुड़ता हैं।
"कहाँ से आए हो जनाब "। सामने से एक हमउम्र का लड़का मुस्करातें हुए पूछतां हैं।
"तुम्हें इससे क्या, कहीं से भी आया हूं "। राज गुस्से मे तिलमिलाते हुए बोलता है ।
"अरे साहब!आप तो गुस्सा हो गए । मैं तो आपके भले के लिए पूंछ रहा हूँ" ।
"मेरा भला कैसे? तुम जानत हो क्या मुझे?"
"नहीं जब ही तो पूछने आया हूँ ,शाम के छ: बज रहे हैं ,आप जल्दी मेरे साथ चलिए ,आप का यहां रहना खतरे से खाली नहीं है"। कहते हुए वो आदमी राज का हाथ पकड़ कर दौड़ते हुए उसे अपनी एक छोटी सी दुकान के अंदर ले जात है ,अंदर पहुंचते ही वो अपनी दुकान की सटर बंद कर चार बार मिर्च की माला से पूरी सटर पर हाथ फेरता हैं "।
"कौन हो तुम,मुझे यहां लेकर क्यों आए और ये क्या कररहे हो तुम ,कहीं तुम भूत प्रेत तो नहीं ?"
"साहब कैसी बातें कररहे हैं आप, मैं आपको नही जानता पर मैं आपको यहां इसलिए लेकर आया ,क्योंकि वहां आपकी जान को खतरा था"।
"खतरा, कैसा खतरा?"
साहब छ: बजे के बाद इस जगह.पर कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलता है ,इस जगह पर भूतों का बास हैं ,सूर्य अस्त होते ही भूत अपनी शक्तियों से लोगों को मारकर उनका खून पीना शुरू कर देते हैं ,आप यहां नए नए आए थे ,मैंने आपको बस से उतरते ही देख लिया था और मैं जबसें आपका पीछा कररहा हूँ ,ताकि आपको बता सकूं ।"
"पर तुम्हें मेरे लिए इतने हमदर्दी क्यों है?"
"साहब , मैं भी इंसान ही हूं आपकी तरह मैंने इसी जगह पर सात साल पहले अपना परिवार खोया था "।
"कैसे?"
मुझे आप लोंगो से शिकायत हैं आप लोग रचना पढते हैं पर रचना कैसी लगी ये नहीं बताते । एक लेखक का मन लिखने मे तभी लगता है जब उसके काम को सराहना मिलती हैं और लोग उसके लेखन पर प्रतिक्रिया देते हैं । अगर आपको इसमें कोई अशुद्धियां या कुछ अनुचित लगता है तो वो जरूर कमेंट्स करकर बताएं ।
शुक्रिया
(शेष अगले भाग में)
Pragati gupta
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