चारों तरफ खुशियों का माहौल था । आज चार दिन बचे थे रीना की विदाई को । सब बहुत खुश थे और रीना भी बस उसे एक बात की चिंता खाए जा रही थीं कि उसकी शादी के बाद उसके मां -बाप का क्या होगा ? भइया तो जॉब के चक्कर मे देश से बाहर चले गए और भाभी तो भइया के बिना यहां रहने से रही ।ऐसे मे मां पापा को पैसे का इंतजाम भी कैसे होगा , उन्होंने तो पूरी पूंजी इस शादी मे लगा दी हैं । वो करें भी तो क्या करें? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । सोचते सोचते उसने एक तरकीब ढूंढ निकाली और डर के भाव के साथ उसने रमेश अपने होने वाले पति को फोन किया और अपने विचार उसेबताएं ।रमेश समझदार और सुशील था ।वो रीना की बात मान गया । दिन बीतते गए और आज शादी का दिन था ,मतलब रीना की जिंदगी की एक नई शुरुआत । जयमाला मंडप सब हो गया और अब कन्यादान की शुभ घड़ी आ गई ।रीना के बाप ने जैसे ही बेटी के कन्यादान के लिए अपना हाथ बढ़ाया वैसे ही रीना बीच मंडप मे खडी हुई और बोली "मुझे आप सबसे कुछ कहना हैं -आज मेरी शादी हैं और कल मैं विदा होकर अपने ससुराल चली जाऊंगी । भइया और भाभी विदेश मे रहते हैं तो वो भी लौट जाएंगे अपने घर ऐसे मे मेरे मां बाप अकेले पड़ जाएंगे और बुढापे हाथों मे इतना दम नहीं कि वो मेहनत करके अपना पेट भर पांए ।इन्होंने अपना सारा पैसा मेरी शादी मे लगा दिया तो मैं चाहतीं हूँ कि मेरे सास ससुर मुझसे इस वक्त सबके सामने ये वादा करें कि वो मेरी नौकरी से आने वाला पैसा एक माह मेरे मां बाप को देंगे और दूसरे माह का पैसा अपने पास रखेंगे ।" रीना की ये बात सुनकर वहां उपस्थित सभी लोगों की आखों मे आसूं आ जाते हैं । रीना के सास ससुर रीना को वादा करते हैं कि वो रीना की बात का मान रखेंगे ।
अगर हर बेटी यूं ही समझदारी से काम लें तो उसका विवाह कभी उसके मा बाप के लिए चिंता का विषय नहीं बनेगा ।
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